सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने 4-3 के बहुमत से 1967 के अज़ीज़ बाशा मामले में दिए गए उस फैसले को खारिज कर दिया जिसके आधार पर एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इंकार किया गया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में दिए गए निष्कर्षों के आधार पर एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को नए सिरे से निर्धारित करने का काम तीन जजों की बेंच पर छोडा है. AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर तीन जजों की बेंच फिर से सुनवाई करेगी. ये मामला AMU का मेडिकल पीजी कोर्सेस में मुस्लिम कैंडिडेट के लिए 50% आरक्षण लागू करने से शुरू हुआ था, जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को रद्द कर दिया था, जिसके तहत एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिया गया था.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने और जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा के लिए बहुमत का फैसला लिखा है. वहीं तीन जज, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिसम दीपाकंर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने बहुमत से अलग मत रखा है.
फैसला सुनाते वक्त सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा,
"अगर कोई संस्थान अल्पसंख्यक समुदाय की ओर से स्थापित किया गया है लेकिन उसका संचालन अल्पसंख्यक समुदाय की ओर से नहीं हो रहा है तो ऐसे संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता."
सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी तब आई, उन्होंने गौर किया कि क्या किसी संस्थान को अल्पसंख्यक तभी माना जाएगा, जब उसकी स्थापना और प्रशासन किसी अन्य अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा की जाएगी. सीजेआई ने कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना और प्रशासन, दोनों एक साथ ही होगा. अदालत ने इस बात पर भी जोड़ दिया आर्टिकल 30 के तहत दिए अधिकार निरपेक्ष नहीं है. CJI ने आगे कहा कि अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों के लिए भेदभाव के विरुद्ध सुरक्षा की गारंटी देता है.यहां सवाल उठता है कि क्या इसमें सिर्फ गैर-भेदभाव का अधिकार है या कोई विशिष्ट अधिकार भी शामिल हैं.
बता दें कि AMU को 1920 में स्थापित किया गया था. इस पर सीजेआई ने कहा कि अनुच्छेद 30 को कमजोर करना होगा अगर यह केवल संविधान लागू होने के बाद ही स्थापित संस्थानों पर लागू होता है. संविधान से पहले स्थापित अल्पसंख्यक संचालित शैक्षणिक संस्थानों को भी अनुच्छेद 30 के तहत शासित किया जाना चाहिए. संविधान से पहले और बाद के इरादों के बीच में अंतर का उपयोग अनुच्छेद 30(1) को कमजोर करने के लिए नहीं किया जा सकता है. यहां ध्यान देने योग्य ये बातें है कि पहले केन्द्र में UPA की सरकार थी, जो AMU के साथ अल्पसंख्यक दर्जे के लिए सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. 2014 में सत्ता परिवर्तन होने पर केन्द्र ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के मामले में अपना नाम वापस ले लिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2006 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले की वैधता पर निर्णय लेने के लिए नई पीठ के गठन के वास्ते मामले के CJI के समक्ष रखी जाएगी.
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