Advertisement

Article 22: कैसे करें कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और नजरबंदी से अपनी सुरक्षा

कानून समाज की सुरक्षा के लिए है, उसे हाथ में लेने का अधिकार उनके पास भी नहीं है जो लोग इसे लागू करने में लगे होते हैं.

preventive detention act, 1950

Written by My Lord Team |Published : April 20, 2023 5:15 PM IST

नई दिल्ली: भारतीय संविधान ने नागरिको को कई तरह के अधिकार दिए हैं ताकि वे अच्छे से बिना किसी दबाव के अपना जीवन व्यतीत कर सकें. साथ ही, सभी नागरिकों की रक्षा के लिए कानून भी बनायें गए हैं. लेकिन अगर इन्हीं कानूनो का गलत इस्तेमाल करके आम नागरिक को मनमाने तरीके से गिरफ्तार किया जाता है या फिर नजरबंद किया जाता है या हमारी आजादी पर अंकुश लगाया जाता है तो ऐसे में क्या करना चाहिए.

इन बातों से सम्बन्धित प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 22 में दिया गया है, जानते हैं क्या है यह अनुच्छेद और यह कैसे करता है आपकी सुरक्षा.

अनुच्छेद 22

संविधान के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है. संविधान का अनुच्छेद 21 यह अधिकार प्रदान करता है. वहीं अगर कोई किसी की आजादी को बेवजह कानून की मदद से छीनने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ है अनुच्छेद 22. यह हमारे देश के सभी नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों को मनमानी गिरफ्तारी और नजरबंदी से सुरक्षा प्रदान करता है.

Also Read

More News

इस अनुच्छेद को कई खंडों में विभाजित किया गया है. इसमें मनमानी गिरफ्तारी और नजरबंदी के खिलाफ अपनी सुरक्षा के लिए क्या कदम उठा सकते हैं उसके बारे में बताया गया है.

इसके खंड एक के अनुसार, जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है उसे जल्द से जल्द गिरफ्तारी के कारणों से अवगत कराना होगा. बिना कारण बताएं किसी भी व्यक्ति को हिरासत में नहीं रखा जाएगा.

गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी पसंद के कानूनी परामर्श लेने  और बचाव करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.

खंड दो के अनुसार, गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट की अदालत तक की यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर ऐसी गिरफ्तारी के चौबीस घंटे की अवधि के भीतर गिरफ्तार और हिरासत में रखे गए प्रत्येक व्यक्ति को निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा और ऐसे किसी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के प्राधिकार के बिना उक्त अवधि से अधिक हिरासत में नहीं रखा जाएगा.

गिरफ्तारी के विरुद्ध अधिकार

  • गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी गिरफ्तारी का कारण जानने का अधिकार है और पुलिस का कर्तव्य है कि वह उसे बताए.
  • गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना चाहिए.
  • गिरफ्तार व्यक्ति को वकील से परामर्श करने और बचाव करने का अधिकार है.
  • एक व्यक्ति को निवारक नजरबंदी के तहत अधिकतम 3 महीने के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है लेकिन सलाहकार बोर्ड द्वारा बढ़ाया जा सकता है.
  • जब गिरफ्तार व्यक्ति विदेशी दुश्मन हो तब गिरफ्तारी निवारक निरोध के तहत किया जाता है, जब आधार का खुलासा करना सार्वजनिक हित के खिलाफ होता है, और संसद के पास उन परिस्थितियों को निर्धारित करने की पूरी शक्ति होती है, जिसके तहत निरोध को सलाहकार बोर्ड की अनुमति के बिना 3 महीने से अधिक बढ़ाया जा सकता है और पालन की जाने वाली प्रक्रिया बना सकती है एक जांच आदेश में सलाहकार बोर्ड द्वारा.

निवारक नजरबंदी कानूनों के खिलाफ सुरक्षा

नजरबंदी के दो कारण और प्रकार हैं

दंडात्मक निरोध - इसका प्रयोग विशेष रूप से, दबाव बनाकर किसी व्यक्ति को उसके पहले से ही किए गए कार्यों के लिए दंडित करने के लिए किया जाता है.

निवारक निरोध (Preventive Detention)- इसका लक्ष्य उसे ऐसा करने से रोकना है यदि कोई उचित संदेह है कि उसके कार्यों से समाज को नुकसान होगा या सरकार की सुरक्षा को खतरा होगा.

अनुच्छेद 22(4) से (7) में बताया गया है अगर किसी को निवारक नजरबंदी कानूनों के तहत गिरफ्तार किया जाता है तो क्या कदम उठाना चाहिए. यह इस तरह के नजरबंदी के लिए अनुमति देने वाले किसी भी कानून के तहत गिरफ्तार और हिरासत में लिए जाने पर पर रोक लगाती है.

हमारे कानूनों में, निवारक नजरबंदी की कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है, लेकिन इसे “दंडात्मक” शब्द के विपरीत परिभाषित किया गया है.

मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978)

इस मामले में यह निर्धारित किया गया था कि निवारक नजरबंदी को नियंत्रित करने वाले कानून को न केवल संविधान के अनुच्छेद 22 की आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए, बल्कि अनुच्छेद 21 की आवश्यकताओं को भी पूरा करना चाहिए. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो निवारक नजरबंदी को नियंत्रित करने वाले कानून में उल्लिखित तंत्र को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के अनुसार उचित, न्यायपूर्ण और निष्पक्ष होना चाहिए.