
आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पति-पत्नी के बीच के रिश्ते को लेकर अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि कपल के बीच केवल तनावपूर्ण संबंध या झगड़े, आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध का पर्याप्त प्रमाण नहीं हैं. साथ ही पति की ओर से पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं था.

दहेज हत्या का मामला
दहेज के इस मामले में महिला की मौत, अपने ससुसराल में, आग लगने से हुई थी. महिला को उसके पति द्वारा छोड़ दिया गया था, जो कथित तौर पर किसी अन्य महिला के साथ रह रहा था.

सुसाइड से दो दिन पहले झगड़ा
पति एक स्कूल में काम करता था. उसकी पत्नी ने इस घटना को लेकर उस स्कूल के प्रिंसिपल को भी चिट्ठी लिखी, जिसे पुलिस के बीचबचाव करने पर सुलझा लिया गया. वहीं, महिला की मौत से दो दिन भी आपस में झगड़ा होने की बात सामने आई.

पति दोषी
FIR के बाद पुलिस ने जांच की और मामला सुनवाई के लिए अदालत के सामने लाया गया और 2001 में ट्रायल कोर्ट ने पति को दोषी ठहराया और 2013 में हाई कोर्ट ने इस सजा को बरकरार रखा. इसके बाद पति ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला नहीं बनता
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि पक्षों के बीच कुछ विवाद था, यह स्वयं उकसाने के कार्य को स्थापित नहीं करता. अदालत ने यह भी कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ नहीं है जो यह दर्शाए कि आरोपी का कार्य मृतक की आत्महत्या से सीधा संबंध रखता है.

भारतीय दंड संहिता की धारा 306
लगभग तीन दशक पहले हुई इस घटना के कारणों को विस्तृत करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (IPC Section 306) के तहत दोषसिद्धि के लिए पति के कृत्य और पत्नी की आत्महत्या के बीच सीधा संबंध होना चाहिए था, जो इस मामले में नहीं था.

त्वरित प्रमाण नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने (Abetment of Suicide) के लिए प्रत्यक्ष और त्वरित प्रमाण होना आवश्यक है, जो इस मामले में नहीं था. कोर्ट ने कहा कि आरोप केवल केवल अनुमानों और तनावपूर्ण संबंधों पर आधारित थे.