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चांदी की थाली में खाना मांगने को लेकर Dowry Case, दोषी पति को Bombay HC से ऐसे मिली राहत

पति की सजा को रद्द करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि शादी में चांदी की थाली में खाना न परोसने से होने वाली नाराजगी एक छोटा मुद्दा था और इसे दहेज की मांग का आधार नहीं बनाया जा सकता.

Written by Satyam Kumar Published : April 4, 2025 1:54 PM IST

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दहेज का मामला

दहेज के इस मामले में पति को दो साल जेल की सजा हुई थी. इस सजा के फैसले को उसने बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी.

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कपल की शादी

कपल की शादी साल 2001 में हुई थी. दोनों को एक बच्ची भी है. पत्नी ने कहा कि दहेज के लिए पति ने शादी के समय चांदी की थाली, सोने की अंगूठी और अन्य सामान व धन की मांग की थी, जिसे ना दिए जाने पर उसने उसके साथ ऐसा बर्ताव किया.

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मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न

पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके पति व उसके परिवारवालों ने दो वर्षों तक उसे टॉर्चर किया. साथ ही उसके पति ने बासी चावल फेंकने पर बुरी तरह से पीटा था.

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क्रूरता का मामला

वहीं, पत्नी ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा महिला के साथ क्रूरता), धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुँचाना) और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत दर्ज कराई.

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दो साल जेल की सजा

मजिस्ट्रेट अदालत ने पति को दो साल की कठोर कारावास और 500 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई, जबकि उसके परिवार के सदस्यों को बरी कर दिया. सेशन कोर्ट ने भी मजिस्ट्रेट कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था.

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बॉम्बे हाई कोर्ट

हालांकि, ऐसा करना पति को ही भारी पड़ा, बॉम्बे हाई कोर्ट ने उस पर एक लाख रूपये का जुर्माना लगाया है. हाई कोर्ट ने कहा कि उनसे ऐसा जानबूझकर और गुजारा-भत्ता से बचने के लिए किया था.

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आरोप के सबूत नहीं

अदालत ने पाया कि इस मांग के बाद भी दोनों पति-पत्नी खुशी से साथ रहे और अभियोजन पक्ष दहेज की मांग को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा.

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दहेज के लिए क्रूरता के साक्ष्य नहीं

बॉम्बे हाई कोर्ट ने जोर देकर कहा कि दहेज संबंधी मांगों और क्रूरता के लिए ठोस सबूतों की आवश्यकता होती है और निचली अदालतों ने इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि अभियोजन पक्ष दहेज की मांग को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा.

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पत्नी को पीटा

इस पर महिला के वकीलों ने बासी चावल फेंकने की घटना का दावा किया, जिसके बाद पति ने कथित रूप से उसे बुरी तरह पीटा और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.

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पति को बरी किया

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि इसका कोई सबूत नहीं है कि ऐसा दहेज के लिए गया हो. साथ मेडिकल रिपोर्ट और गवाहों के बयानों में विसंगतियां पाई गईं है और आरोपों को साबित करने के लिए कोई स्वतंत्र गवाह नहीं मिला है. हाई कोर्ट ने पति की सजा माफ करते हुए राहत दी है.