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क्या मुस्लिमों को भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है? सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को सहमत

आज यह मामला दोबारा से आज तब उठा, जब एक मुस्लिम शख्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग किया कि वो पैकृक सम्पति के बटवारें में मुस्लिम पर्सनल लॉ का पालन नहीं करना चाहते. उन पर भारतीय उत्तराधिकार एक्ट 1925 लागू होना चाहिए.

मुस्लिम महिला की सुप्रीम कोर्ट में याचिका (AI Image)

Written by Satyam Kumar |Published : April 17, 2025 12:40 PM IST

सुप्रीम कोर्ट इस बात पर विचार करने के लिए सहमत हुआ कि क्या मुस्लिम समुदाय को भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत लाया जा सकता है. क्या उनके पैतृक संपत्ति में विरासत का बंटवारा उस शरीयत की जगह, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के तहत संभव है. अब सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर सुनवाई करने को तैयार हो गया है. यह मामला दोबारा से आज तब उठा, जब एक मुस्लिम शख्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग किया कि वो पैकृक सम्पति के बटवारें में मुस्लिम पर्सनल लॉ का पालन नहीं करना चाहते. उन पर भारतीय उत्तराधिकार एक्ट 1925 लागू होना चाहिए. इस पर कोर्ट ने कहा कि इस तरह की एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में पहले दे पेंडिंग है, हम उसी के साथ आगे इस नई याचिका पर सुनवाई करेगे.

सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार

आज चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने केरल के त्रिशूर जिले के निवासी नौशाद केके की ओर से दायर याचिका पर संज्ञान लिया, जिसमें उन्होंने कहा कि वह धर्म के रूप में इस्लाम का त्याग किए बिना शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून के तहत आना चाहते हैं. पीठ ने उनकी याचिका पर केंद्र और केरल सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा. पीठ ने इस याचिका को इस मुद्दे पर लंबित समान मामलों के साथ संलग्न करने का आदेश दिया.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अप्रैल में पीठ ने अलप्पुझा निवासी और ‘एक्स-मुस्लिम्स ऑफ केरल’ की महासचिव सफिया पीएम की याचिका पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की थी. याचिका में कहा गया था कि वह एक नास्तिक मुस्लिम महिला हैं और वह अपनी पैतृक संपत्तियों का निपटान शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून के तहत करना चाहती हैं. केरल की साफिया पीएम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की थी कि मुस्लिम परिवार में जन्म लेने के बावजूद वो लोग, जो मुस्लिम पर्सनल लॉ का पालन नहीं करना चाहते , उन पर भारतीय उत्तराधिकार एक्ट 1925 लागू होना चाहिए. संपति के बंटवारे में उन्हें अधिकार मिलने चाहिए जो शरीयत क़ानून के बजाए सामान्य सिविल क़ानून के तहत मिलते है. अभी भारतीय उत्तराधिकार एक्ट की धारा 58 में ये प्रावधान है कि ये मुसलमानों पर लागू नहीं होता(चाहे वह खुद को नास्तिक भी क्यों ना मानते हों). साफिया ने इसी प्रावधान को SC में चुनौती दी है. इसी तरह ‘कुरान सुन्नत सोसाइटी’ ने 2016 में एक याचिका दायर की थी जो शीर्ष अदालत में लंबित है. अब तीनों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई होगी.

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सिब्बल ने कहा कि मेरे धर्म में उत्तराधिकार किस तरह लागू होगा, ये पूरी तरह से पर्सनल लॉ के तहत आता है. चीफ जस्टिस ने कहा कि लेकिन हिंदुओं के मामले में भी ऐसा होता है. आर्टिकल 26 इस मामले में कानून बनाने पर रोक नहीं लगाता. आर्टिकल 26 इस मायने में सेकुलर कानून है कि यह सभी पर लागू होता है. सिब्बल ने सवाल उठाया कि इस्लाम में उत्तराधिकार मृत्यु के बाद होता है और नया कानून मौत से पहले ही उत्तराधिकार में हस्तक्षेप कर रहा है.