नई दिल्ली: दुनियाभर में यह माना गया है कि जब एक शख्स की उम्र 18 साल हो जाती है, वो वयस्क हो जाते हैं और बतौर वयस्क, वो अपने लिए फैसले खुद ले सकता है। इसी उम्र को ध्यान में रखते हुए कानून ने देश में शादी की उम्र निर्धारित की है और यही उम्र शारीरिक संबंधों की राजामंदी के लिए है। हाल ही में, बंबई उच्च न्यायालय में एक मामला आया जिसकी सुनवाई के दौरान अदालत ने टिप्पणी की है कि देश में 'एज ऑफ कन्सेंट' और 'एज ऑफ मैरिज' अलग-अलग होनी चाहिए।
देश में 'एज ऑफ मैरिज' और 'एज ऑफ कन्सेंट' क्या है, इसको अलग-अलग करने की बात क्यों की जा रही है और इस विषय पर चर्चा क्यों हो रहा है, आइए जानते हैं...
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 'लैंगिक अपराधों से बालकों के संरक्षण अधिनियम' (Protection of Children from Sexual Offences [POCSO] Act) के तहत देश में 'एज ऑफ कन्सेंट' (Age of Consent) 18 वर्ष है। यदि कोई लड़की अपनी मर्जी से भी किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाती है लेकिन उसकी उम्र 18 साल से कम है तो कानून की नजर में उसकी रजामंदी का कोई मतलब नहीं होगा; इसे अपराध समझा जाएगा।
शादी की उम्र (Age of Marriage) की बात करें तो 'विशेष विवाह अधिनियम' की धारा 4(c) (Section 4(c) of The Special Marriage Act) के अनुसार, देश में लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र 18 साल है और लड़कों की शादी की उम्र 21 साल निर्धारित की गई है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बंबई उच्च न्यायालय में एक मामला सामने आया जिसमें एक आदमी को पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत रेप के लिए दोषी ठहराया गया है क्योंकि उसने एक 17.5 साल की लड़की के साथ उसकी रजामंदी से शारीरिक संबंध बनाए थे।
इसकी सुनवाई के दौरान न्यायाधीश भारती डाँगरे (Justice Bharati Dangre) ने यह कहा है कि यह मामला विचित्र है क्योंकि यहां जिस लड़की से शारीरिक संबंध बनाने के लिए आदमी पर रेप का इल्जाम लगा है, उसने अपनी मर्जी से शारीरिक संबंध बनाए थे। ऐसे में आदमी को बलात्कार का दोषी ठेहरना सही नहीं है।
कुछ समय पहले एक मामला आया था जिसमें सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार से अनुरोध किया था कि वो देश में एज ऑफ कन्सेंट को 18 साल से कम करके 16 साल कर दिया जाए। इसलिए, अदालत का ऐसा कहना है कि एज ऑफ कन्सेंट को कम किया जाना चाहिए और यह शादी की उम्र से कम होनी चाहिए।
बंबई उच्च न्यायालय की पीठ का कहना है कि रोमांटिक रिश्ते के अपराधीकरण ने न्यायपालिका, पुलिस और बाल संरक्षण प्रणाली का महत्वपूर्ण समय बर्बाद करके आपराधिक न्याय प्रणाली पर बोझ डाल दिया है, और अंततः जब पीड़िता अपने रोमांटिक रिश्ते के मद्देनजर आरोपी के खिलाफ आरोप का समर्थन न करके अपने से मुकर जाती है। उसके साथ, इसका परिणाम केवल दोषमुक्ति ही हो सकता है।
कुछ समय पहले भी इसी तरह का एक मामला बंबई उच्च न्यायालय में आया था जिसकी सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार से अनुरोध किया था कि एज ऑफ कन्सेंट को 18 साल से कम करके 16 साल कर देना चाहिए। इसकी वजह अदालत ने सोशल मीडिया बताई थी; उनका यह कहना था कि सोशल मीडिया के इस दौर में बच्चे बहुत जल्दी बड़े हो जाते हैं और इन सब मामलों में उन्हें पहले से ज्यादा जानकारी होती है। ऐसे में आज के माहौल को देखते हुए एज ऑफ कन्सेंट कम कर देनी चाहिए।