नई दिल्ली: फ़ैमली कोर्ट पारिवारिक संबंधों से उत्पन्न होने वाली कानूनी समस्याओं से निपटने के लिए बनाया गया विशेष न्यायालय है. वर्तमान में पारिवारिक विवाद का निपटारा फैमिली कोर्ट में होता है. इसके गठन से पूर्व परिवार से संबंधित मामलों जिले के सामान्य न्यायालय द्वारा देखे जाते थे. सामान्य न्यायालय में बहुत तरह के केस आते थे इसलिये फ़ैमली कोर्ट का गठन किया गया ताकि परिवार से संबंधित मामलों का जल्द से जल्द निप्टारा हो सके.
हमारे देश में पहली बार फ़ैमली कोर्ट या पारिवारिक न्यायालय वर्ष 1984 में लाए गए अधिनियम के बाद स्थापित किया गया. इससे पूर्व देश में कोई फ़ैमली कोर्ट नहीं था, बल्कि सभी मामले सामान्य कोर्ट में ही चलायें जाते थे.
जनसंख्या वृद्धि के साथ हमारे देश में पारिवारिक विवाद के मामले भी तेजी से बढने लगे. जिसके चलते इन पारिवारिक विवाद से जुड़े मामलो के शीघ्र समाधान के लिए अलग से कोर्ट की मांग बढ गई. जनसंख्या के अनुपात में बढे पारिवारिक मामलो के शीघ्र निस्तारण के लिए ही पारिवारिक न्यायालयों की जरूरत पड़ी.
Family Court बनाने का उदेश्य पारिवारिक विवादों का समाधान जल्द से जल्द करना था. यदि Family Court में किसी मामले का समाधान नहीं हो पाए तो पहले उसे मीडीएशन के लिए भेज दिया जाता है जहां दोनों पक्षों के बीच विवाद को खतम करने का कोशिश है, लेकिन फिर भी अगर विवाद का समाधान नहीं होता है तो उसे ऊपरी अदालत में भेज दिया जाता है.
जब तक परिवार से संबंधित सब कुछ ठीक नहीं होगा, तब तक परिवार के सभी सदस्य चिंतित रहेंगे, जिससे कामकाजी लोगों का मन काम में नहीं लगेगा और बच्चे जो छात्र है, उनका पढ़ाई में मन नहीं लगेगा. पारिवारिक मामले जल्दी सुलझने से घर में शांति बनी रहे, ताकि सभी अपना काम ठीक से कर सकें, इन उद्देशय को ध्यान में रख कर ही Family Court का गठन हुआ.
Family Court में शादी, तलाक़, बच्चे गोद लेना, बच्चे को संपत्ति में हिस्सा देना, विधवा को संपत्ति में हिस्सा देना जैसे केस जाते हैं. शादी register करना, तलाक़ देना, संपत्ति में हिस्सा देने की ज़िम्मेदारी भी Family Court की है.
फ़ैमली कोर्ट में जज बनने के लिए फ़ैमिली कोर्ट्स एक्ट, 1984 (Family Courts Act, 1984) के धारा 4 (3) (a) के तहत, कम से कम भारत में सात साल तक कानूनी अधिकारी के तौर पर कार्य का अनुभव होना आवश्यक है. Family Courts Act की धारा 4 (3) (b) के तहत सात साल किसी भी हाई कोर्ट या किसी और कोर्ट में अभिवक्ता के तौर पर काम किया होना भी आवश्यक शर्त है.
Family Courts Act, 1984 की धारा 3(1) (a) के तहत अगर किसी शहर की जनसंख्या दस लाख से जादा है तो वहां Family Court का होना अनिवार्य है. हाई कोर्ट जरुरत के हिसाब से कही भी फ़ैमिली कोर्ट बनवा सकती है. फ़ैमिली कोर्ट के जज को फ़ैमिली जज बोलते है जो डिस्ट्रिक्ट जज के बराबर के होते हैं लेकिन उनका क्षेत्राधिकार पारिवारिक मामलों तक ही सीमित रहता है.