27 Months Pregnancy: सुप्रीम कोर्ट ने महिला को गर्भपात (Abortion) कराने की मांग वाली याचिका खारिज की. महिला ने 27 माह से अधिक की गर्भावस्था को समाप्त करने की इजाजत देने की मांग की थी. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि गर्भ में पल रहे बच्चे के जीने के अधिकारों का क्या? गर्भ में पल रहे भ्रूण को भी जीने का मौलिक अधिकार है. कहकर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को खारिज कर दिया. बता दें कि याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने भी महिला को अबॉर्शन कराने की इजाजत नहीं मिली थी.
एमटीपी अधिनियम के तहत, 24 सप्ताह से अधिक की अवधि की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति तब दी जा सकती है जब मेडिकल बोर्ड द्वारा भ्रूण में पर्याप्त असामान्यता हो या गर्भवती महिला के जीवन को किसी प्रकार का खतरा हो.
सुप्रीम कोर्ट में, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस एस वी एन भट्टी और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच अबॉर्शन की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
याचिकाकर्ता के वकील ने मांग किया,
"वो (महिला) NEET की तैयारी करवा रही हैं. अत्यधिक दर्दनाक स्थिति में है. उसकी मानसिक और शारीरिक स्थिति पर विचार किया जाना चाहिए."
बेंच ने जवाब दिया,
"गर्भ में पल रहे बच्चे को भी जीने का मौलिक अधिकार है. आप उसके बारे में क्या कहते हैं?"
याचिकाकर्ता के वकील ने स्पष्ट किया कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट महिला के लिए ही बना है.
वकील ने प्रत्युत्तर दिया,
"यह कानून माँओं के लिए बना है,"
बेंच ने स्पष्ट किया कि गर्भावस्था सात माह से ज्यादा की हो चुकी है.
बेंच ने आगे कहा,
"बच्चे के जीवित रहने के अधिकार के बारे में क्या? आप इसे कैसे संबोधित करते हैं?"
याचिकाकर्ता के वकील ने जोड़ देकर कहा कि इन अदालत महिला की शारीरिक और मानसिक कष्ट पर भी विचार कर सकती हैं.
बेंच ने ये भी कहा, भ्रूण की जांच के लिए बने मेडिकल बोर्ड ने भी स्पष्ट किया है कि भ्रूण एकदम स्वस्थ है. मां को इससे कोई परेशानी नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट ने महिला को 27 माह का गर्भ समाप्त करने की मांग को खारिज किया है.