दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने जेएनयू प्रशासन को एक दिव्यांग छात्र को हॉस्टल देने का आदेश दिया है. सुनवाई के दौरान ही कोर्ट ने विकलांग (Disabled) शब्द के प्रयोग पर आपत्ति जताई है. विकलांग की जगह दिव्यांग (Differently Abled) का प्रयोग करने के निर्देश दिए. कोर्ट ने कहा कि विकलांग लोगों को ये सुविधाएं केवल समान अवसर प्रदान करने के लिए दी जाती है ताकि वे अपने अन्य साथियों के साथ बराबरी से अपनी काबिलियत का प्रदर्शन कर सकें. कोर्ट ने छात्र के पक्ष में फैसला देते हुए जेएनयू को हॉस्टल (JNU's Hostel) प्रदान करने के आदेश दिया है. ये मामला संजीव कुमार मिश्रा बनाम जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और अन्य है. [Sanjeev Kumar Mishra v. Jawaharlal Nehru University & Ors].
जस्टिस सी हरिशंकर ने इस मामले की सुनवाई की. जस्टिस ने कहा कि जेएनयू हॉस्टल मैनुअल के अनुसार, विश्वविद्यालय अपने किसी भी दिव्यांग छात्र को छात्रावास देने से मना नहीं कर सकता.
कोर्ट ने कहा,
"याचिकाकर्ता को जेएनयू छात्रावास मुहैया कराने के साथ-साथ जेएनयू की नीतियों के अनुसार सभी सुविधाएं दी जाएं."
कोर्ट ने जेएनयू को आदेश दिया है. आदेश में कहा कि फैसला सुनाए जाने के एक हफ्ते के अंदर याचिकाकर्ता को ऐसी सभी सुविधाएं उपलब्ध कराएं. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जेएनयू प्रशासन से कहा कि वे विकलांग व्यक्तियों के लिए 'दिव्यांग' शब्द का उपयोग करें.
कोर्ट ने कहा,
"विकलांग व्यक्तियों का अधिकार अधिनियम, 2016 (RPWD Act) और सभी कानून जो विकलांगता से पीड़ित व्यक्ति को सहायता देने का प्रयास करते हैं. ये प्रयास केवल विकलांगता को बेअसर करने के लिए हैं, ताकि व्यक्ति की अपनी क्षमता उसके अन्य साथियों से मेल खाए, और वे बराबरी का मौका मिले. ये अनुच्छेद 14 के समान अवसर के सिद्धांत से जुड़ा है. इसलिए 'विकलांग' की जगह 'विशेष रूप से सक्षम' शब्द का उपयोग करें.''
जेएनयू छात्र संजीव कुमार मिश्रा ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की. याचिका में जेएनयू प्रशासन को अपने लिए छात्रावास में कमरा आवंटित करने के निर्देश देने की मांग की. जेएनयू ने इस मांग का विरोध किया. जेएनयू ने कहा कि ये छात्र दूसरी बार मास्टर स्तर की पढ़ाई कर रहा है और हॉस्टल नियमावली के अनुसार उसे दोबारा कमरा नहीं दिया जा सकता है.
अदालत ने सुनवाई के बाद छात्र के पक्ष में फैसला सुनाया है.