सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद दिव्यांग कैदियों के लिए उचित सुविधाओं की मांग से जुड़ी याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. न्यायालय ने कहा है कि यह मुद्दा गंभीर है और इसे जल्दी से जल्दी सुलझाया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर केंद्र सरकार को चार सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है. यह याचिका एक्टिविस्ट सत्यन नरवूर द्वारा दायर की गई है, जिसमें दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के कार्यान्वयन की मांग की गई है. याचिका में दावा किया गया है कि दिव्यांग कैदियों की गंभीर उपेक्षा हो रही है. इस याचिका में प्रोफेसर जी एन साईबाबा और कार्यकर्ता स्टेन स्वामी के मामलों का जिक्र किया गया है, जो इस बात का प्रमाण हैं कि दिव्यांग कैदियों की आवश्यकताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है. साईबाबा की मृत्यु पिछले साल एक सरकारी अस्पताल में हुई थी, जबकि स्वामी की मृत्यु 2021 में हुई थी.
वहीं याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के लागू होने के बाद भी, अधिकांश राज्य जेलों के नियमों में आवश्यक प्रावधान शामिल नहीं किए गए हैं. विशेष रूप से, रैंप और अन्य आवश्यक आवागमन उपायों की कमी है. यह स्थिति विकलांग कैदियों की बुनियादी गतिशीलता को गंभीर रूप से प्रभावित करती है और अधिनियम की वैधानिक आवश्यकताओं का उल्लंघन करती है. याचिका में यह भी दावा किया गया कि जेलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी, जैसे कि रैंप और सुलभ शौचालय, विकलांग कैदियों के दैनिक कार्यों में सहायता के लिए दूसरों पर निर्भर रहने को मजबूर कर देती है. यह स्थिति न केवल उनके स्वास्थ्य के लिए निराशाजनक है, बल्कि उनके अधिकारों का भी उल्लंघन करती है.