उत्तर प्रदेश में अपराध के जरिए अर्जित संपत्ति अब पीड़ितों में वितरित की जाएगी. राज्य के डीजीपी ने जिला एसएसपी और पुलिस कमिश्नरों (ssp/sp /police commissioners) को एसओपी जारी किए हैं. पुलिस गैंगस्टर या पीएमएलए मामले के बिना भी संपत्ति जब्त कर सकती है और दो महीने के भीतर डीएम अदालत के आदेश पर इन संपत्तियों को नीलाम कर प्रभावित व्यक्तियों को लाभ पहुंचाएंगे. यह आपराधिक संपत्तियों से निपटने में एक महत्वपूर्ण बदलाव है. उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक ने ये एसओपी बीएनएसएस की धारा 107, 107(6) के तहत जारी की है, जो कि अदालत के आदेश पर आपराधिक संपत्तियों की कुर्की की अनुमति देती है. आइये जानते हैं कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में और क्या प्रावधान है...
यूपी डीजीपी के स्टैंडर्ड ऑफ प्रोसीजर (SOP) भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 107, 107(6) के तहत कार्रवाई की SOP जारी की है, जिसमें सभी पुलिस कमिश्नरों और कप्तानों को बताया गया कि है कि अगर आरोपी ने 14 दिन के अंदर कुर्क की गई संपत्ति की जानकारी नहीं देता है, तो कोर्ट एक पक्षीय आदेश दे सकता है. जारी एसओपी के अनुसार, अदालत के आदेश पर जिलाधिकारी (DM) अपराध से अर्जित की संपत्तियों को पीड़ितों के बीच दो महीने के भीतर बांट सकते हैं. बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अपराधियों की कुर्क की गई संपत्ति पर जरूरतमंदों के लिए आवास बना रही है.
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS, 2023) अपराधों से प्राप्त मानी जाने वाली संपत्ति को जब्त करने की अनुमति देती है, जिससे ऐसी जांच में कानूनी निगरानी सुनिश्चित होती है. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 107 के अनुसार, अगर किसी पुलिस अधिकारी को संदेह है कि संपत्ति आपराधिक गतिविधि से जुड़ी है, तो वह इसकी कुर्की के लिए आवेदन कर सकता है. इसके लिए अधिकारी को पुलिस अधीक्षक या आयुक्त की मंजूरी की आवश्यकता होती है और इसे उचित न्यायालय या मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए. इस आवेदन का उद्देश्य अपराध से उत्पन्न मानी जाने वाली संपत्ति की कुर्की करना है, ताकि स्थिति को प्रभावी ढंग से और तुरंत संबोधित करने के लिए कानूनी कार्यवाही शुरू की जा सके.
BNSS की धारा 107(6) के अनुसार, न्यायालय या मजिस्ट्रेट को यह निर्धारित करना होगा कि जब्त की गई संपत्ति अपराध की आय है या नहीं. यदि इस बात कि पुष्टि हो जाती है कि संपत्ति अपराध से अर्जित की गई है, तो अदालत जिला मजिस्ट्रेट को अपराध से प्रभावित लोगों के बीच इन आय को निष्पक्ष रूप से वितरित करने का आदेश दे सकती है. यह प्रक्रिया आपराधिक गतिविधियों से जुड़ी संपत्तियों को पुनः आवंटित करके पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करती है, कानूनी प्रणाली में जवाबदेही और पुनर्स्थापन पर जोर देती है.