सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व IAS प्रदीप एन शर्मा की पीएमएलए मामले (PMLA Case) में डिस्चार्ज करने की याचिका खारिज कर दी है. इस याचिका में पूर्व IAS प्रदीप एन शर्मा ने 2004-2005 में किए गए कथित अवैध भूमि आवंटनों के संबंध में धन शोधन रोकथाम अधिनियम (PMLA) के तहत आरोपों से बरी करने की मांग की थी. शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने से पहले हाई कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज की थी. गुजरात हाई कोर्ट ने पिछले साल मार्च में अहमदाबाद PMLA कोर्ट के उस निर्णय को बरकरार रखा था, जिसमें पूर्व IAS प्रदीप शर्मा की डिस्चार्ज याचिका यानि आरोपों से बरी करने की मांग को खारिज किया था.
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने कहा कि शर्मा पर लगाए गए आरोप PMLA के तहत एक निरंतर अपराध का गठन करते हैं, और अपराध की आय की मात्रा वैधानिक सीमा से अधिक है, जो गहन जांच और न्यायिक जांच की आवश्यकता को दर्शाती है. सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी किया कि हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप के लिए कोई आधार नहीं दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता ने इस न्यायालय में पूर्व-ट्रायल चरण में हस्तक्षेप के लिए कोई वैधानिक रूप से स्थायी आधार स्थापित करने में विफल रहा है. अपील के समर्थन में दिए गए सबमिशन न तो वैधानिक रूप से टिकाऊ हैं और न ही न्याय के सर्वोत्तम हित में हैं."
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो शर्मा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, ने तर्क किया कि आरोपित अपराध PMLA के प्रवर्तन से पहले हुए थे या जब संबंधित अपराध अधिनियम की अनुसूची में शामिल नहीं थे. उन्होंने कहा कि वैधानिक ढांचे और PMLA के पूर्ववर्ती प्रवर्तन पर चल रही चर्चाओं के मद्देनजर, शर्मा को अधिनियम के तहत अभियोजन का सामना नहीं करना चाहिए.
इसके विपरीत, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क किया कि शर्मा का आपराधिक आचरण PMLA के लागू होने के बाद भी जारी रहा. उन्होंने बताया कि अवैध भूमि आवंटन के लिए स्वीकृति 2006 में जारी की गई थी, और 2011 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत दायर आरोप पत्र ने पुष्टि की कि अपराध की कुल आय 1.32 करोड़ रुपये से अधिक थी, जो PMLA के तहत कार्रवाई के लिए उचित थी.
दोनों पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने शर्मा की याचिका खारिज करते हुए कहा कि मामले में एक पूर्ण ट्रायल की आवश्यकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"एक उचित ट्रायल आवश्यक है ताकि अपराध की पूरी सीमा का पता लगाया जा सके, याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों का मूल्यांकन किया जा सके, वित्तीय लेनदेन की पूरी श्रृंखला का विश्लेषण किया जा सके, और आरोपों की सत्यता और अपराध की आय की मात्रा का निर्धारण किया जा सके। PMLA के तहत वैधानिक ढांचा यह सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण तंत्र के रूप में कार्य करता है कि अपराध की आय को धोखा देने में शामिल व्यक्तियों को न्याय के कटघरे में लाया जाए और आर्थिक अपराधों को दंडित न किया जाए,"
उक्त टिप्पणियों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व IAS की डिस्चार्ज याचिका खारिद कर दी है.
पूर्व IAS प्रदीप एन शर्मा , जिन्होंने मई 2003 में भुज के कलेक्टर के रूप में कार्य किया, को धोखाधड़ी, जालसाजी और भ्रष्टाचार सहित अपराधों के लिए बुक किया गया था. उन पर 1997 की भूमि राजस्व नीति का दुरुपयोग करने का आरोप है, जो निजी संस्थाओं को बंजर भूमि आवंटित करने के लिए थी. शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने 2001 के गुजरात भूकंप के पीड़ितों के लिए निर्धारित भूमि आवंटनों को गलत तरीके से स्वीकृति दी. उन्होंने एक ट्रस्ट को धोखाधड़ी का प्रमाण पत्र भी जारी किया, जिससे गलत भूमि आवंटन की सुविधा मिली.