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यूपी एन्टी कन्वर्जन लॉ 'राज्य का सेकुलरिज्म' बनाए रखने के लिए हैं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराने के आरोपी को जमानत देने से किया इंकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2021 का उद्देश्य सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देना है, जो भारत के सेकुलरिज्म को दर्शाता है. न्यायालय ने एक महिला को जबरन इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर करने और उसका यौन उत्पीड़न करने के आरोपी व्यक्ति की जमानत खारिज कर दी, जिसमें कथित जबरदस्ती और धर्म परिवर्तन के लिए सबूतों की कमी को रेखांकित किया गया. यह मामला नए धर्मांतरण विरोधी कानून के कथित उल्लंघन से जुड़ा है.

Written by Satyam Kumar |Updated : August 12, 2024 2:06 PM IST

हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 (UP Prohibition of Unlawful Conversion of Religion Act, 2021) अधिनियम को 'राज्य की सेकुलरिज्म' को बरकरार रखने वाला बताया है. अदालत ने जोड़ दिया कि अधिनियम का उद्देश्य लोगों के बीच परस्पर धर्मनिरपेक्षता की भावना को बनाए रखना है. अदालत ने ये बातें सामूहिक तौर पर धर्म परिवर्तन कराने वाले व्यक्ति की जमानत खारिज करते हुए कही. अदालत ने कहा कि एन्टी कन्वर्जन लॉ हर व्यक्ति को अधिकार देता है, कि वह अपने अनुरूप धर्म का चयन, पालन और प्रचार करें.

जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराने वाले आरोपी को राहत नहीं, इलाहाबाद HC ने खारिज की जमानत याचिका

इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने धर्म परिवर्तन कराने के आरोपी को जमानत देने से इंकार किया.

अदालत ने फैसला सुनाया, 

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 आवेदक ने पीड़िता को कथित तौर पर बंदी बनाकर रखा था और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा उसे कुछ इस्लामी अनुष्ठान करने के लिए मजबूर किया जा रहा था, जो उसे स्वीकार्य नहीं था.

इसके अलावा, न्यायालय ने आगे माना कि उसने धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज अपने बयान में एफआईआर संस्करण को बनाए रखा था. अदालत ने आगे कहा कि आरोपी अपनी बात को साबित करने के लिए एक भी सबूत नहीं ला सका. साथ ही वह स्वैच्छिक तौर पर निकाह स्वीकार करने वाली लड़की (पीड़िता) की ओर से कोई आवेदन भी नहीं दे पाया.

बकरीद के दिन पीड़िता को पशुबलि देखने पर किया था मजबूर, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना

अदालत ने ये बातें अजीम नामक एक व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए कही, जिस पर एक लड़की को इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर करने और उसका यौन शोषण करने के आरोप में धारा 323/504/506 आईपीसी और धारा 3/5(1) यूपी विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के तहत मामला दर्ज किया गया है.

जमानत की मांग याचिका में आवेदक-आरोपी ने दावा किया कि उसे झूठा फंसाया गया है और उसने दावा किया कि सूचना देने वाली लड़की, जो उसके साथ रिश्ते में थी, स्वेच्छा से अपना घर छोड़कर चली गई और उसने पहले ही संबंधित मामले में धारा 161 और 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज बयानों में अपनी शादी की पुष्टि की थी.

दूसरी ओर, एजीए ने उसकी जमानत का विरोध करते हुए धारा 164 सीआरपीसी के तहत सूचना देने वाले के बयान का हवाला दिया, जिसमें इस्लाम में धर्म परिवर्तन के लिए जबरदस्ती करने का आरोप लगाया गया और धर्मांतरण के बिना की गई शादी का वर्णन किया गया.

तथ्यों की पृष्ठभूमि में, अदालत ने पाया कि आरोपी ने धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा था कि आवेदक और उसके परिवार के सदस्य उसे इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर कर रहे थे. उसे बकरीद के दिन होने वाली पशु बलि देखने और मांसाहारी भोजन पकाने और खाने के लिए भी मजबूर किया गया था.