नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) को केंद्र सरकार द्वारा यह सूचित किया गया है कि ट्रांसजेंडर्स (Transgender) के पास अलग से आरक्षण का कोई अधिकार नहीं है और न ही यह अधिकार उन्हें दिया जा रहा है। केंद्र का कहना है कि सिर्फ उन ट्रांसजेंडर्स को आरक्षण की सुविधा उठाने का मौका मिलेगा जो पहले से बनी आरक्षण हेतु श्रेणियों में शामिल होंगे।
बता दें कि यह बात एक शपथपत्र (Affidavit) के जरिए अदालत को बताई गई थी जो 'कोर्ट की अवमानना' (Contempt of Court) हेतु दायर याचिका के जवाब में फाइल किया गया था।
जैसा कि हमने आपको अभी बताया, केंद्र ने उच्चतम न्यायालय को सूचित कर दिया है कि ट्रांसजेंडर्स को देश में रोजगार और शिक्षा के क्षेत्रों में अलग से आरक्षण का अधिकार नहीं दिया जाएगा। अगर उन्हें आरक्षण के फ़ायदों को इस्तेमाल करना है तो ऐसा सिर्फ तब हो सकता है जब वो आरक्षण की मौजूदा श्रेणियों में शामिल हों।
केंद्र ने कहा कि यदि कोई ट्रांसजेंडर अनुसूचित जाति (Scheduled Caste), अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe), सामाजिक या आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (Socially or Economically Backward Classes) या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (Economically Weaker Sections) का हिस्सा है, तो उन्हें आरक्षण की सुविधा मिलेगी।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह 'कोर्ट की अवमानना' याचिका, जिसके जवाब में केंद्र ने ऐफिडेविट फाइल किया है, 'राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ' (National Legal Services Authority Vs Union of India) मामले में अदालत के निर्देश को न मानने की वजह से दायर की गई थी।
इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह निर्देश दिया था कि वो ट्रांसजेंडर्स को सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़े हुए वर्गों की श्रेणी में मानें और इस लिहाज से सभी ट्रांसजेंडर्स को शैक्षिक संस्थानों और सार्वजनिक नियुक्तियों में आरक्षण के फायदे मिलने चाहिए।
कुछ ट्रांसजेंडर्स ने उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की थी कि केंद्र और राज्य सरकारों ने अदालत के इस निर्देश का पालन नहीं किया है और इसी के चलते अब केंद्र ने एक शपथपत्र कोर्ट में दायर किया है।