सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दोषियों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के बॉम्बे हाई कोर्ट के फ़ैसले को बरकरार रखा. साल 2015 में सजा सुनाए जाने के बाद आरोपिओं की साल 2016 और 2017 में दया याचिकाएं खारिज हो गई थी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2019 में मौत की सज़ा को लागू करने में अनुचित देरी का उल्लेख किया, जिसके कारण मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया गया, जिसे महाराष्ट्र सरकार ने चुनौती दी, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे बरकरार रखा है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट ने मृत्युदंड को उम्रकैद में बदलने के फैसले को बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सज़ा को '35 साल की उम्रकैद' की सज़ा में बदलने वाले बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को बरकार रखा है. इन दोषियों को निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक फांसी की सज़ा दी दी थी.
2015 में सुप्रीम कोर्ट से सजा होने के बाद 2016 में महाराष्ट्र गवर्नर और 2017 में राष्ट्रपति ने भी उनकी दया अर्जी खारिज कर दी. अप्रैल 2019 में सेशन कोर्ट पुणे ने 24 जून के लिए डेथ वांरट जारी कर दिया, लेकिन इससे पहले फांसी हो पाती, उन्होंने दया अर्जी के निपटारे और डेथ वांरट में देरी का हवाला देते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया.
2019 में बॉम्बे HC ने माना कि दोषियों की फांसी की सज़ा के अमल में गैरवाजिब देरी हुई है. कोर्ट ने फांसी की सज़ा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया. इस फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार ने SC का रुख किया, लेकिन SC ने भी बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है.
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की एक महिला पुणे में बीपीओ में काम करती थी. एक दिन बीपीओ ले जाने के दौरान ड्राइवर पुरुषोत्तम बोराटे और उसका दोस्त प्रदीप कोकाटे महिला को सुनसान इलाके में ले जाकर उसका बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी.