Advertisement

40% दिव्यांगता के आधार पर छात्रों को MBBS में एडमिशन नहीं रोका जा सकता, मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट भी जरूरी: SC

सुप्रीम कोर्ट में छात्र ने ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन रेगुलेशन, 1997 के उस नियम को चुनौती दी, जो 40% या उससे अधिक विकलांगता वाले व्यक्तियों को MBBS पाठ्यक्रम से रोकता है.

अपने लैपटॉप पर पढ़ाई करता दिव्यांग छात्र (पिक क्रेडिट Freepik)

Written by Satyam Kumar |Updated : October 15, 2024 3:00 PM IST

मंगलवार यानि आज सुप्रीम कोर्ट ने बेंचमार्क दिव्यांग ( (40% या इससे ज्यादा दिव्यांगता) छात्रों के लिए मेडिकल कॉलेज में प्रवेश को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक दिव्यांगता मूल्यांकन बोर्ड (Disability Assement Board) की रिपोर्ट नहीं आती, जिसमें कहा गया हो कि अमुक छात्र  MBBS पाठ्यक्रम के अध्ययन के लिए समक्ष नहीं है, तब तक किसी छात्र को डॉक्टरी में नामांकन करने से रोका नहीं जा सकता है. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि विकलांगता मूल्यांकन बोर्ड की नकारात्मक राय अंतिम नहीं है और इसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है. मामले में सुप्रीम कोर्ट ने छात्र को मेडिकल में नामांकन के आदेश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ एक चुनौती पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट ने छात्र को एमबीबीएस पाठ्यक्रम में एडमिशन देने से मना कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ एक दिव्यांग छात्र की मेडिकल में एडमिशन देने की याचिका पर सुनवाई की. 18 सितंबर को, अदालत ने एक आदेश पारित किया था, जिसमें उम्मीदवार को MBBS में प्रवेश की अनुमति दी थी. वहीं मामले में अदालत द्वारा गठित एक चिकित्सा बोर्ड ने यह राय दी थी कि वह चिकित्सा शिक्षा प्राप्त कर सकता है.

याचिकाकर्ता छात्र ने ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन रेगुलेशन, 1997 के उस नियम को चुनौती दी, जो 40% या उससे अधिक विकलांगता वाले व्यक्तियों को MBBS पाठ्यक्रम से रोकता है. छात्र को स्पीच और लैंग्वेज दिव्यांगता के आधार पर MBBS में नामांकन से डिस्क्वालिफाई कर दिया गया था.

Also Read

More News