सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में साफ किया है कि सभी दिव्यांग लोग परीक्षा में जवाब लिखने के लिए सहायक लेखक (Scribe) की सुविधा का इस्तेमाल कर सकते है, भले ही वो 40 फीसदी के विकलांता मानक को पूरा न करते हो. कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वो आज के आदेश मद्देनजर नई गाइडलाइंस तय करे. सभी ऑथोरिटी ,भर्ती करने वाली एजेंसी और परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाए इन दिशानिर्देश पर अमल सुनिश्चित करें. बता दें कि अभी तक 40 फीसदी दिव्यांगता के शिकार लोग ही परीक्षा में जवाब लिखने के लिए लेखक की सुविधा का इस्तेमाल कर सकते थे.
याचिकाकर्ता ने आईबीपीएस (IBPS) व सभी बैंकिंग परीक्षा लेने वाली विभिन्न प्राधिकरणों के साथ भारत सरकार को पार्टी बनाते हुए रिट याचिका दायर की. याचिकाकर्ता उम्मीदवार को विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के अनुसार क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल होने से 25% स्थायी विकलांगता मूल्यांकन किया गया है. उसने दावा किया कि 40% बेंचमार्क विकलांगता को स्क्राइब की सुविधा उपलब्ध कराने के नियम के चलते उसे कई परीक्षा में स्क्राइब देने से मना कर दिया गया है.
हालांकि, जिसे चुनौती देते हुए उम्मीदवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने रिट याचिका को सुना. याचिकाकर्ता की शिकायत है कि 10 अगस्त 2022 को जारी किया गया कार्यालय ज्ञापन, जो कि इस न्यायालय के निर्देशों के अनुसार, उचित समायोजन के तत्व को शामिल नहीं करता है और RPwD अधिनियम, 2016 के वास्तविक अर्थ और उद्देश्य को पूरा नहीं करता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के अनुसार, कार्यालय ज्ञापन में कई कमियां हैं. सबसे पहले, इस न्यायालय के निर्देशों के अनुसार, 2018 के ज्ञापन के अनुच्छेद I से XVII में वर्णित सभी शर्तें/लाभ PwBD उम्मीदवारों को दिए जाने चाहिए थे,
सुप्रीम कोर्ट ने, विकाश कुमार मामले में अपने निर्णय को दोहराते हुए कहा कि किसी भी विकलांगता के कारण परीक्षा लिखने में बाधा डालने वाले उम्मीदवारों को आवश्यक सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए. दृष्टिहीन या कम दृष्टि वाले उम्मीदवारों के मामले में, विकलांगता उन्हें 'लिखने' से रोकती नहीं है, लेकिन यह परीक्षा लिखने में बाधा डालती है.
तीसरे, कार्यालय ज्ञापन के अनुच्छेद 3(b) में एक भ्रमित करने वाली स्थिति उत्पन्न होती है, जहां PwD उम्मीदवारों के परीक्षा में सुविधाएं प्राप्त करने के अधिकार को केवल इस आधार पर खारिज किया जा सकता है कि उनकी विकलांगता 'लिखने' से संबंधित नहीं है. यह अधिनियम के पूरे उद्देश्य का उल्लंघन करता है.
सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को निर्देश दिया कि वे विकलांगता संबंधी सभी प्रतिबंधों को समाप्त करने और सभी PwD उम्मीदवारों को परीक्षा में छूट प्रदान करने का निर्देश देना चाहिए, चाहे विकलांगता की प्रकृति, प्रकार या रूप कुछ भी हो.
कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में, इस न्यायालय की संविधान पीठ ने यह सवाल उठाया कि क्या संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का दावा किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ किया जा सकता है जो राज्य की संस्था नहीं है. न्यायालय ने 4:1 के बहुमत से इसका उत्तर सकारात्मक दिया.यह स्पष्ट किया गया कि अनुच्छेद 19 और 21 के तहत अधिकारों को निजी संस्थाओं के खिलाफ भी लागू किया जा सकता है. इस निर्णय ने राजबीर मामले में निर्धारित सिद्धांत को भी पार कर दिया है. इस मामले में, प्रतिवादी संख्या 1 का यह तर्क कि वे रिट क्षेत्राधिकार के अधीन नहीं हैं, हमें स्वीकार्य नहीं है. यह ध्यान देने योग्य है कि कार्यालय ज्ञापन में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि दिशानिर्देश सभी प्राधिकरणों पर लागू होते हैं.
अदालत ने यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि सभी भर्ती एजेंसियां और परीक्षा आयोजित करने वाले निकाय एक समान दिशा-निर्देशों का पालन करें. शीर्ष अदालत ने नोडल एजेंसी को निर्देश दिया है कि वे नियमों में सुधार कर प्रतिबंध को हटाएगी और उचित तरीके से छूट प्रदान करेगी.
सुप्रीम कोर्ट अब दो महीने के बाद इस मामले की सुनवाई करेगी, उस वक्त दिशानिर्देशों पर हुई कार्रवाई की जानकारी रखी जाएगी.