नई दिल्ली: दंगों के चलते मणिपुर में इंटरनेट बहाली को लेकर कुछ समय पहले मणिपुर उच्च न्यायालय (Manipur High Court) ने एक फैसला सुनाया था जिसको राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। इसपर आज, 10 जुलाई, 2023 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है और मुख्य न्यायाधीश ने इसपर टिप्पणी भी की है.
मणिपुर उच्च न्यायालय ने राज्य में सीमित तरह से इंटरनेट बहाली पर फैसला सुनाया था जिसको सरकार ने चुनौती दी थी। बता दें कि उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) इस मामले में आज ही सुनवाई करने के लिए मान गई थी।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता (Solicitor General of India Tushar Mehta) ने, जो मणिपुर राज्य (State of Manipur) की तरफ से अदालत में अपीयर हो रहे हैं, इस मामले में उच्च न्यायालय के निर्देश को चुनौती देने वाली याचिका मेन्शन की है।
इसकी सुनवाई की मांग करते हुए सॉलिसिटर जनरल ने अदालत से कहा कि यह याचिका मणिपुर में बंद इंटरनेट सेवाओं को लेकर है जहां हर दिन स्थितियां बदल रही हैं। उन्होंने बताया है कि याचिका हाईकोर्ट के ऑर्डर से जुड़ी है।
देश के मुख्य न्यायाधीश इस मामले को कल यानी 11 जुलाई, 2023 के लिए लिस्ट कर रहे थे लेकिन सॉलिसिटर जनरल ने उनसे अनुरोध किया कि इस मामले की सुनवाई आज ही हो जाए।
इसपर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) और न्यायाधीश पी एस नरसिम्हा (Justice PS Narasimha) की पीठ ने फैसला किया है कि मणिपुर वायलेंस से जुड़ी अन्य याचिकाओं के साथ इस मामले पर सुनवाई भी आज ही होगी।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, सुनवाई के दौरान देश के मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि वो नहीं चाहते कि कोर्ट में चल रही सुनवाई के चलते सूबे में हिंसा और कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़े और कानून व्यवस्था या सुरक्षा कायम करना उनका नहीं बल्कि चुनी हुई सरकार का काम है।
उन्होंने यह भी कहा कि अगर याचिकाकर्ता सुझाव दे तो वो उनपर विचार कर सकते हैं। SG तुषार मेहता ने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकार के कड़े प्रयासों के बाद अब स्थिति में सुधार हो रहा है पर ऐसे समय में याचिकाकर्ताओं को भी संयम बरतने की जरूरत है क्योंकि कोई भी गलत जानकारी या कोर्ट में पेश की गई एकतरफा दलीलें माहौल बिगाड़ सकती हैं।
सरकार ने कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट पेश की और चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील कॉलिन गोंजाल्विस से कहा कि वो रिपोर्ट का अध्ययन करके अपने सुझाव कल कोर्ट को दें। कोर्ट कल भी इस मामले पर सुनवाई करेगा।
समाचार एजेंसी भाषा (Bhasha) के हिसाब से उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि मणिपुर में हिंसा बढ़ाने के मंच के रूप में शीर्ष अदालत का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि ज्यादा से ज्यादा वह प्राधिकारियों को स्थिति को बेहतर बनाने का निर्देश दे सकता है और इसके लिए उसे विभिन्न समूहों से मदद लेने तथा सकारात्मक सुझावों की जरूरत होगी।
शीर्ष न्यायालय ने मणिपुर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से जून में जारी एक परिपत्र पर निर्देश लेने को कहा जिसमें उसने राज्य सरकार के कर्मचारियों को ड्यूटी पर उपस्थित होने या वेतन में कटौती का सामना करने के लिए कहा था। उच्चतम न्यायालय ने तीन जुलाई को मणिपुर सरकार को जातीय हिंसा से प्रभावित राज्य में पुनर्वास सुनिश्चित करने और कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार के लिए उठाए गए कदमों की विस्तृत जानकारी वाली एक अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था।
कुछ समय पहले मणिपुर उच्च न्यायालय (Manipur High Court) ने सरकार को निर्देश दिया था कि वो राज्य में सीमित तौर पर इंटरनेट सेवाओं की पुनर्स्थापना की कोशिश करें जो बिना सोशल मीडिया के जारी की जाएगी।
7 जुलाई को मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को ऑर्डर दिया कि वो एक्सपर्ट कमिटी के सुझावों और राज्य की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए 'इंटरनेट लीस लाइन' (ILL) और 'फाइबर टू द होम' (FTTH) कनेक्शन से प्रतिबंध हटा दें।
भाषा के हिसाब से राज्य में मेइती और कुकी समुदायों के बीच झड़पों में अब तक कम से कम 150 लोगों की मौत हो चुकी है तथा सैकड़ों अन्य घायल हो गए हैं। पहली बार हिंसा तीन मई को तब भड़की जब मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में जनजातीय एकजुटता मार्च आयोजित किया गया था। मणिपुर की आबादी में मेइती समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं। जनजातीय नगा और कुकी आबादी का हिस्सा 40 प्रतिशत है और वे पहाड़ी जिलों में रहते हैं।