Hathras Stampede: शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाथरस भगदड़ की घटना से जुड़ी जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. अदालत ने उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका ले जाने की इजाजत दी है. याचिका में 2 जुलाई को हाथरस में हुई भगदड़ की घटना की जांच के लिए शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति के तत्काल गठन की मांग की गई थी. सुप्रीम कोर्ट में याचिका एडवोकेट विशाल तिवारी द्वारा दायर की गई थी.
IANS की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के फुलराई गांव में स्वयंभू बाबा नारायण साकार हरि द्वारा आयोजित एक धार्मिक समागम में हुई भगदड़ से महिलाओं और बच्चों सहित कम से कम 123 लोगों की मौत हो गई. समागम में एक लाख से अधिक लोग शामिल हुए थे, जिनमें ज्यादातर महिलाएं थीं.
आज की सुनवाई की शुरुआत में ही सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका दायर करने के लिए याचिकाकर्ता से सवाल किया.
सर्वोच्च न्यायालय ने जनहित याचिका वादी की याचिका को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने की प्रार्थना को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 226 के अनुसार उसे उच्च न्यायालय में जाने की स्वतंत्रता दी.
सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दायर जनहित याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार को स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने और आयोजकों, अधिकारियों और अधिकारियों के खिलाफ उनके 'लापरवाह आचरण' के लिए कानूनी कार्रवाई शुरू करने के निर्देश देने की मांग की गई.
इस मामले में, उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने SITरिपोर्ट की संस्तुतियों पर सब डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम), सर्किल ऑफिसर (सीओ) और तहसीलदार समेत छह अधिकारियों को निलंबित करने का आदेश दिया है.
इससे पहले, राज्य सरकार ने घटना की जांच के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति बृजेश कुमार श्रीवास्तव (द्वितीय) की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था.