भारत में दहेज प्रथा के खिलाफ कानूनों के बावजूद, कई मामलों में न्यायालयों में दहेज के आरोपों की जटिलताएं सामने आती हैं. हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने 69 वर्षीय महिला को दहेज मामले में बरी कर दिया है. आइये इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे न्यायालय ने सबूतों की कमी के आधार पर इस निर्णय को लिया.
2005 में दहेज निषेध कानून के तहत दर्ज मामले में, महिला पर आरोप था कि उसने अपने बेटे की सगाई के दौरान दहेज के रूप में 50,000 रुपये लिए. इसके बाद, महिला और अन्य आरोपियों ने 5 लाख रुपये नकद, 20 तोला सोना और अन्य सामान की मांग की. आरोपों के अनुसार, लड़की के परिवार की ओर ने समझौते के लिए 1.5 लाख रुपये की पेशकश की, लेकिन लड़की को घर में प्रवेश नहीं दिया गया और शादी रद्द कर दी.
शिकायत के आधार पर पुलिस ने FIR दर्ज किया. ट्रायल कोर्ट ने महिला और दो अन्य आरोपियों को तीन साल छह महीने की सजा सुनाई. फैसले को महिला ने तेलंगाना हाई कोर्ट में चुनौती दी. तेलंगाना हाई कोर्ट ने महिला की सजा को छह महीने से घटाकर दो महीने करने के साथ ही उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा. इस मामले में, उच्च न्यायालय ने यह माना कि महिला और अन्य आरोपियों ने दहेज की मांग की थी. इस फैसले के खिलाफ महिला ने सुप्रीम कोर्ट में गई.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष के पास दहेज देने के संबंध में कोई ठोस प्रमाण नहीं था. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने जो भी सबूत पेश किए, वे मौखिक गवाही पर आधारित थे, जो कि असंगत और पूर्वाग्रहित थे.
महिला के खिलाफ गवाही देने वाले गवाहों ने अपने बयान में कई विरोधाभास प्रस्तुत किए. न्यायालय ने यह भी कहा कि गवाहों की गवाही में न तो कोई ठोस साक्ष्य था और न ही कोई स्पष्ट पुष्टि, जिसके चलते, न्यायालय ने गवाहों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया.
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि दहेज मांग के आरोपों में अभियोजन पक्ष का यह दायित्व है कि वह अपने केस को सुसंगत और विश्वसनीय साक्ष्य के माध्यम से साबित करे. अदालत ने कहा कि गवाहों द्वारा प्रस्तुत किए गए बयान सुनने में अच्छे लग सकते हैं, लेकिन जब वे वास्तविकता में असंगत होते हैं, तो उनका कोई महत्व नहीं होता.
अदालत ने यह भी बताया कि इस मामले में कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं था, जो अभियोजन पक्ष के दावे को समर्थन दे सके. सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय लिया कि महिला के खिलाफ दहेज के आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं है. अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय और निचली अदालतों द्वारा दिए गए निर्णयों को रद्द किया जाता है और महिला को सभी आरोपों से बरी किया जाता है.