नई दिल्ली: समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता को लेकर दायर करीब 20 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य संविधान पीठ सुनवाई कर रही है. CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य संविधान में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हेमा कोहली, जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल है.
केन्द्र सरकार ने अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ के समक्ष एक नया हलफनामा दाखिल किया है. इस हलफनामें के जरिए केन्द्र सरकार ने मामले में देश के सभी राज्यों और केन्द्र शाषित प्रदेशो को भी पक्षकार के रूप में शामिल करने का अनुरोध किया है.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केन्द्र सरकार के इस हलफनामे के अनुरोध को अस्वीकार करते हुए खारिज कर दिया है.
हलफनामे में केन्द्र ने कहा है कि वर्तमान मामले में संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्यों के विधायी अधिकार और राज्यों के निवासियों के अधिकार शामिल हैं और इसलिए सभी राज्यों को भी इस सुनवाई में शामिल किया जाना चाहिए.
SG तुषार मेहता ने बुधवार को अदालत में कहा कि राज्यों से परामर्श शुरू किया है. राज्यों को भी पार्टी बनाकर नोटिस किया जाए. ये अच्छा है कि राज्यों को भी मामले की जानकारी है.
याचिकाकर्ता के वकील मुकुल रोहतगी ने सरकार के इस हलफनामें का विरोध करते हुए कहा कि ये पत्र कल 18 अप्रेल को लिखा गया है, लेकिन अदालत ने पांच महीने पहले नोटिस जारी किया था. ये गैरजरूरी है.
मंगलवार 18 अप्रैल को ही केन्द्र सरकार के कानूनी मामलों के विभाग ने राज्यों के सभी मुख्य सचिवों को भी लिखा है कि अगर उन्हें नोटिस जारी नहीं किया जाता है तो समलैंगिक विवाह पर अपने विचार प्रस्तुत करें. राज्य 10 दिन में अपनी राय दें, ताकि केंद्र पहले अपना पक्ष रख सके.
Joint Secretary and Legislative Counsel KR Saji Kumar की ओर से दायर किए गए इस हलफनामें में "यह स्पष्ट है कि राज्यों के अधिकार, विशेष रूप से इस विषय पर कानून बनाने का अधिकार, इस विषय पर किसी भी निर्णय से प्रभावित होंगे.
हलफनामें में कहा गया है कि विभिन्न राज्यों ने पहले ही प्रत्यायोजित विधानों के माध्यम से इस विषय पर कानून बना लिया है, इसलिए हलफनामे में कहा गया है कि उन्हें वर्तमान मामले में सुनवाई के लिए एक आवश्यक और उचित पक्षकार बनाया जाए.
हलफनामें में कहा गया है कि वर्तमान मुद्दों पर राज्यों को पक्षबार बनाए बिना और उनकी राय प्राप्त किए बिना कोई भी निर्णय, वर्तमान मामले को अधूरा ही रखेगा.
केन्द्र सरकार ने इस हलफनामें में कहा है कि इस मामले के परिणाम दुरगामी होंगे, इसलिए अनुरोध किया जाता है कि मामले में सभी राज्यों और केन्द्र शाषित प्रदेशो को भी पक्षकार बनाया जाए.
गौरतलब है कि संविधान पीठ द्वारा इस मामले पर सुनवाई का बुधवार को दूसरा दिन है. केंद्र सरकार ने समलैंगिक जोड़ों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं का सख्त विरोध किया है.