भारत में सेम-सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता नहीं है लेकिन मद्रास हाई कोर्ट (Madras HC) के इस फैसले के बाद वे एक कपल के कपल या यूं कहें एक फैमिली की तरह रह सकते हैं. मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि महज वैवाहिक बंधन ही परिवार बनाने का एकमात्र जरिया नहीं है. यानि कि इस फैसले के लिहाज से परिवार के कॉन्सेप्ट को एक संकीर्ण दायरे में रखकर देखना सहीं नहीं है, लोग एक साथ रहते हैं, उनमें अपनत्व का भाव है, यह भी परिवार होने की परिभाषा हो सकती है. आइये जानते हैं कि एक समलैंगिक कपल को उसके पैरेंट से छुड़ाकर मद्रास हाई कोर्ट ने दोनों के साथ में रहने का फैसला किस आधार पर सुनाया है.
एक महिला ने अपनी साथी की रिहाई के लिए मद्रास हाई कोर्ट में हैबियस कॉर्पस (Habeus Corpus- बंदी प्रत्यक्षीकरण) याचिका दायर की थी, जिसे कथित तौर पर उसके परिवारवालों ने बंदिश कर रखा था. सुनवाई के लिए इस मामले को जस्टिस जीआर स्वामीनाथन और जस्टिस वी लक्ष्मीनारायणन की खंडपीठ के सामने लाया गया. अदालत ने कहा कि 'परिवार' शब्द को व्यापक अर्थों में समझा जाना चाहिए और उसने सुप्रीयो मामले सहित कई महत्वपूर्ण निर्णयों का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को वैध नहीं किया था, लेकिन क्वीर व्यक्तियों को परिवार बनाने के अधिकार को स्वीकार किया था.
मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि माता-पिता के द्वारा बंदी बनाकर रखी गई महिला के साथ उसके पैरेंट ने दुर्व्यवहार किया गया और उसे 'सामान्य' बनाने के लिए अनुष्ठानों से गुजारा गया, जबकि वह पार्टनर के साथ रहने देने की जिद कर रही थी. वहीं, एक वयस्क के रूप में, उसे अपने साथी को चुनने का अधिकार है. हाई कोर्ट ने माता-पिता को महिला को रिहा करने का निर्देश दिया है.
सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने पुलिस के रवैये पर नाराजगी जताई. जब अदालत को ज्ञात हुआ कि याचिकाकर्ता द्वारा कई पुलिस थानों में लिखित शिकायतें दर्ज कराने के बावजूद, जब तक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर नहीं की गई, तब तक पुलिस की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई. मद्रास हाई कोर्ट ने पुलिस की इस निष्क्रियता की कड़ी निंदा की और कहा कि सरकार के अधिकारियों, खासकर पुलिस का कर्तव्य है कि वे LGBTQIA+ समुदाय के सदस्यों से इस तरह की शिकायतें मिलने पर तुरंत और उचित कार्रवाई करें.
बताते चलें कि इस फैसले से समलैंगिक विवाह को वैधता नहीं मिली है. हालांकि, अदालत के फैसले के अनुसार, विवाह परिवार बनाने का एकमात्र तरीका नहीं है और समलैंगिक जोड़े भी परिवार बना सकते हैं. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के सुप्रियो मामले के फैसले के अनुरूप है, जिसमें समलैंगिक विवाह को वैध नहीं किया गया था, लेकिन समलैंगिक व्यक्तियों के परिवार बनाने के अधिकार को स्वीकार किया गया था.