हाल ही मेंमद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि ‘टेलीफोन टैपिंग’ को जब तक कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत उचित नहीं ठहराया जाता है, तब तक यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है. जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने यह भी कहा कि निजता का अधिकार अब संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न अंग है.
मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5(2) सार्वजनिक आपातकाल की स्थिति में या सार्वजनिक सुरक्षा के मद्देनजर टेलीफोन को ‘इंटरसेप्ट’ करने का अधिकार देती है. हाई कोर्ट ने आगे कहा कि पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के पैरा 28 में निर्धारित किया गया है कि उपरोक्त दो स्थितियां पैदा होने पर ही प्राधिकरण संदेशों को इंटरसेप्ट करने का आदेश पारित कर सकता है तथा इसके लिए संतोषजनक तथ्य प्रदान करने होंगे कि ऐसा करना उसके लिए क्यों आवश्यक था?
प्राधिकरण को यह बताना होगा कि भारत की संप्रभुता और अखंडता, देश/राज्य की सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था या किसी अपराध के उकसावे को रोकने के लिए ऐसा करना आवश्यक या समीचीन था.
जस्टिस ने ‘एवरॉन एजुकेशन लिमिटेड’ के प्रबंध निदेशक पी किशोर की याचिका स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें आयकर के सहायक आयुक्त से जुड़े रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार से संबंधित मामले में याचिकाकर्ता के मोबाइल फोन की टैपिंग को अधिकृत किया गया था.
यह मामला रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के सिलसिले में सीबीआई जांच से संबद्ध है. जस्टिस ने कहा कि इस मामले में 12 अगस्त, 2011 का विवादित आदेश न तो सार्वजनिक आपातकाल के दायरे में आता है और न ही ‘सार्वजनिक सुरक्षा के हित में’, जैसा कि शीर्ष अदालत ने पीयूसीएल के मामले में स्पष्ट किया है. जस्टिस ने यह भी कहा कि अधिकारियों ने इंटरसेप्ट की गई सामग्री को निर्धारित समय के भीतर समीक्षा समिति के समक्ष प्रस्तुत न करके टेलीग्राफ नियमावली के नियम 419-ए (17) का भी उल्लंघन किया है.
(खबर एजेंसी इनपुट से है)