हाल ही में पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ एक निजी समारोह में रिल कल्चर से चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आजकल हर कोई 20 सेकंड में यूट्यूब या किसी भी सोशल मीडिया मंच पर जो कुछ भी देखता है, उस पर अपनी एक राय बनाना चाहता है. यह एक गंभीर खतरा पैदा करता है, क्योंकि अदालतों में निर्णय लेने की प्रक्रिया कहीं अधिक गंभीर है. यह वास्तव में अत्यंत जटिल होता है, जिसे आज सोशल मीडिया पर किसी के पास इसे समझने के लिए धैर्य या सहनशीलता नहीं है और यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है, जिसका सामना भारतीय न्यायपालिका कर रही है. उन्होंने कहा कि लोग 20 सेकंड की ऑनलाइन क्लिप के आधार पर राय बना लेते हैं, जो न्यायिक निर्णय लेने की जटिलता को कम करता है. इस समारोह के दौरान पूर्व सीजेआई ने कहा कि संवैधानिक न्यायालयों के पास लोकतंत्र में कानूनों की वैधता निर्धारित करने की शक्ति है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में कानूनों की वैधता तय करने की शक्ति संवैधानिक अदालतों को सौंपी गई है. उन्होंने कहा कि शक्तियों के पृथक्करण में यह प्रावधान है कि कानून बनाने का काम विधायिका द्वारा किया जाएगा, कानून का क्रियान्वयन कार्यपालिका द्वारा किया जाएगा और न्यायपालिका कानून की व्याख्या करेगी तथा विवादों का निपटारा करेगी. कई बार ऐसा होता है कि अधिकार क्षेत्र को लेकर घालमेल हो जाता है. लोकतंत्र में नीति निर्माण का काम सरकार को सौंपा जाता है. उन्होंने कहा कि जब मौलिक अधिकारों की बात आती है, तो संविधान के तहत अदालतें हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य हैं। नीति निर्माण विधायिका का काम है, लेकिन इसकी वैधता पर निर्णय लेना अदालतों का काम और जिम्मेदारी है.
एनटीवी द्वारा आयोजित संविधान @ 75 समारोह में जब पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ से पूछा गया कि क्या सोशल मीडिया पर ‘ट्रोलिंग’ से न्यायाधीशों पर असर पड़ता है, तो उन्होंने जवाब दिया कि न्यायाधीशों को इस तथ्य के बारे में बहुत सावधान रहना होगा कि वे लगातार विशेष हित समूहों के हमले के अधीन हैं, जो अदालतों में होने वाले निर्णयों को बदलने की कोशिश कर रहे हैं.
इस दौरान कॉलेजियम प्रणाली का बचाव करते हुए 50वें सीजेआई रहे न्यायमूर्ति चंद्रचूड़़ ने कहा कि इस प्रक्रिया के बारे में बहुत गलतफहमी है और यह बहुत ही सूक्ष्म विश्लेषण वाला और बहुस्तरीय है. उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में न्यायपालिका की एकमात्र भूमिका है. उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की वरिष्ठता पर सबसे पहले विचार किया जाना चाहिए. यह पूछे जाने पर कि क्या न्यायाधीशों को राजनीति में प्रवेश करना चाहिए, पूर्व सीजेआई ने कहा कि संविधान या कानून में ऐसा करने पर कोई रोक नहीं है.
पूर्व सीजेआई ने कहा कि समाज आपको सेवानिवृत्ति के बाद भी न्यायाधीश के रूप में देखता है, इसलिए, जो काम दूसरे नागरिकों के लिए ठीक है, वह न्यायाधीशों के लिए पद से हटने के बाद भी ठीक नहीं होगा. उन्होंने आगे कहा कि मुख्य रूप से यह हर न्यायाधीश को तय करना होता है कि सेवानिवृत्ति के बाद उनके द्वारा लिया गया निर्णय उन लोगों पर असर डालेगा या नहीं, जो न्यायाधीश के रूप में उनके द्वारा किए गए काम का मूल्यांकन करते हैं. बता दें कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ दो साल तक सीजेआई के रूप में काम करने के बाद 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हुए.
(खबर PTI इनपुट के आधार पर लिखी गई है)