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पंजाब सरकार को High Court से बड़ा झटका, भाखड़ा-ब्यास बोर्ड के कार्यों में हस्तक्षेप करने पर लगाई रोक, सतलुज-यमुना विवाद पर भी SC का निर्देश आया

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार को भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) के कामकाज में हस्तक्षेप करने से रोक दिया है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा सरकारों को सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर विवाद में केंद्र के साथ सहयोग करने का निर्देश दिया है.

Written by Satyam Kumar |Published : May 7, 2025 2:33 PM IST

पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार को बड़ा झटका लगा है. हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार को भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) के कार्यों में हस्तक्षेप करने पर रोक लगा दिया है. साथ ही पंजाब सरकार को हरियाणा और राजस्थान के कुछ हिस्सों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त 4,500 क्यूसेक पानी छोड़ने के हालिया फैसले का पालन करने का निर्देश दिया है. हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार और उसके किसी भी अधिकारी, जिसमें पुलिस कर्मी भी शामिल हैं, को भाखड़ा नांगल बांध और लोहांड नियंत्रण कक्ष के दैनिक संचालन, परिचालन और विनियमन में हस्तक्षेप करने से रोक दिया है. ये कार्यालय बीबीएमबी द्वारा संचालित हैं, जिसमें हस्तक्षेप करने को लेकर भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी.

 सतलुज-यमुना नहर विवाद पर SC का निर्देश भी आया

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पंजाब और हरियाणा सरकारों को सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर विवाद को सुलझाने में केंद्र के साथ सहयोग करने का निर्देश दिया है. केंद्र ने जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ को बताया कि उसने इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए पहले ही प्रभावी कदम उठाए हैं. पीठ ने कहा कि हम दोनों राज्यों को सौहार्दपूर्ण समाधान पर पहुंचने में भारत संघ के साथ सहयोग करने का निर्देश देते हैं. पीठ ने कहा कि यदि 13 अगस्त तक मामला नहीं सुलझता है तो वह इस पर सुनवायी करेगी. केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पीठ से कहा कि हमने मध्यस्थता के लिए प्रयास किए हैं, लेकिन राज्यों को अपनी बात पर अमल करना होगा.

एसवाईएल नहर की परिकल्पना रावी और ब्यास नदियों से पानी के प्रभावी आवंटन के लिए की गई थी. इस परियोजना में 214 किलोमीटर लंबी नहर बनाने की परिकल्पना की गई थी, जिसमें से 122 किलोमीटर नहर पंजाब में और 92 किलोमीटर हरियाणा में बनायी जानी थी. हरियाणा ने अपने क्षेत्र में यह परियोजना पूरी कर ली है, लेकिन पंजाब ने 1982 में निर्माण कार्य शुरू किया था लेकिन बाद में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया. दोनों राज्यों के बीच विवाद दशकों से जारी है. सुप्रीम कोर्ट ने 15 जनवरी, 2002 को हरियाणा द्वारा 1996 में दायर एक वाद में उसके पक्ष में फैसला सुनाया था और पंजाब सरकार को एसवाईएल नहर के अपने हिस्से का निर्माण करने का निर्देश दिया था.

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