पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने खुद को और राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए खुद पर ही जुर्माना लगाया है. वजह एक दिवंगत जज की विधवा पत्नी को पेंशन और अन्य रिटायरमेंट लाभों के भुगतान में में हुई देरी. पंजाब हाई कोर्ट का ये आदेश दिंवगत सिविल जज (वरिष्ठ श्रेणी)-कम-अतिरिक्त मुख्य मजिस्ट्रेट गुरनाम सिंह सेवक की पत्नी प्रीतम कौर द्वारा दायर एक याचिका पर पारित किया गया हैं.
पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस सुधीर सिंह की पीठ ने राज्य और हाई कोर्ट के प्रशासनिक पक्ष (प्रतिवादी) पर देरी करने से एतराज जताते हुए ₹25,000 का जुर्माना लगाया है.
हाई कोर्ट ने कहा,
"प्रतिवादी को ₹25,000 की प्रतीकात्मक लागत का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी ठहराया गया है, जिसे याचिकाकर्ता (मृत न्यायिक अधिकारी की विधवा) को 60 दिनों के भीतर अदा करना होगा, अन्यथा याचिका को सुनवाई के लिए पीठ के समक्ष लाया जाएगा. जुर्माने की राशि का विभाजन और इसे वहन करने की जिम्मेदारी प्रतिवादियों के निर्णय पर छोड़ दी गई है,"
हाई कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 300A का जिक्र करते हुए कहा कि पेंशन संबंधी लाभ और रिटायरमेंट दावे संपत्ति के समान हैं, जिन्हें कानून के प्रावधान के बिना नहीं छीना जा सकता है. फैसला सुनाते हुए अदालत ने आगे कहा कि जज और उनकी विधवा को मार्च 2018 से मार्च 2024 तक पेंशन का भुगतान न करना न केवल बिना किसी कानूनी अधिकार के था, बल्कि कानून की स्पष्ट अवहेलना भी थी.
अदालत ने स्पष्ट किया,
"इस मामले में कम से कम यही कहा जा सकता है कि न तो न्यायिक अधिकारी और न ही उनके परिवार को उनके निधन के बाद सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार किया. यह स्थापित कानून है कि जब पेंशन संबंधी लाभ देय और स्वीकार्य होते हैं, यदि इन्हें जारी नहीं किया जाता, तो अब इन्हें ब्याज और लागत के साथ भुगतान किया जाना चाहिए,"
पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि यह स्थापित कानून है कि पेंशन के लाभ जब भी देय और योग्य होते हैं, यदि जारी नहीं किए जाते हैं, तो उन्हें ब्याज और लागत के साथ भुगतान करना होता हैय पेंशन के लाभ और सेवानिवृत्ति के दावे संपत्ति के समान होते हैं, जिन्हें कानून के प्रावधान के बिना नहीं छीना जा सकता, जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 300-ए में निर्धारित है. याचिकाकर्ता के पति और याचिकाकर्ता को 09.03.2018 से मार्च-2024 तक अस्थायी/सेवानिवृत्ति पेंशन से वंचित करना न केवल कानून के प्रावधान के बिना था, बल्कि कानून की स्पष्ट अवहेलना भी है. पंजाब हाई कोर्ट ने प्रतिवादियों को नियमित पेंशन और पारिवारिक पेंशन के बकाये को 10% वार्षिक ब्याज के साथ भुगतान करने का आदेश दिया जाता है, जो नियमित पेंशन के देय होने की तिथि 01.07.1999 से और पारिवारिक पेंशन के देय होने की तिथि 03.10.2021 से लागू की जाएगी.
दिवंगत जज साल 1964 में पंजाब लेखा महानियंत्रक कार्यालय में एक अपर डिवीजन क्लर्क के रूप में अपने करियर की शुरुआत की, उसके बाद साल 1973 में पंजाब सिविल सेवा (न्यायिक) परीक्षा पास की. उन्होंने 1996 में स्वैच्छिक रिटायरमेंट (Voluntary Retirement) मांगी, लेकिन इस मांग को चल रहे विभागीय जांच के कारण खारिज कर दी गई. हालांकि, उन्हें जांच के दौरान निलंबित किया गया था. साल 2001 में उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया. हालांकि, हाई कोर्ट ने 2018 में चार्जशीट, जांच रिपोर्ट और उसके खिलाफ की गई कार्रवाई को रद्द कर दिया और अभियोजन पक्ष को यह स्वतंत्रता दी कि कानून के अनुसार वह दोबारा से मुकदमा शुरू कर सकते हैं. इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी और जज के खिलाफ जांच जारी रहा.
इस क्रम में जांच और संबंधित मामले के लंबित रहने के कारण, उन्हें पेंशन संबंधी लाभ नहीं दिए गए. वहीं, साल 2021 में जज साहब का निधन हुआ तो उस दौरान भी उनके खिलाफ जांच लंबित रही.
साल 2022 में, याचिकाकर्ता (मृत न्यायिक अधिकारी की विधवा) ने यह याचिका दायर की, जिसके दौरान उच्च न्यायालय की सतर्कता अनुशासन समिति ने 24.03.2023 को दोनों चार्ज-शीट को समाप्त कर निर्णय लिया कि 17.08.1996 से 30.06.1999 तक निलंबन के दौरान बिताया गया समय छुट्टी के रूप में माना जाए और मृत न्यायिक अधिकारी के कानूनी उत्तराधिकारियों के पक्ष में सेवा लाभ जारी किए जाएंगे. अब हाई कोर्ट ने इस मामले में न्यायिक अधिकारी यानि जज की विधवा पत्नी को हुई परेशानी के चलते ब्याज सहित बकाये पेंशन और फैमिली पेंशन की राशि देने को कहा है.
केस टाइटल: प्रीतम कौर बनाम पंजाब राज्य और अन्य