नई दिल्ली: Delhi High Court ने अदालतों में दायर होने वाली जनहित याचिकाओं को लेकर बेहद महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. मुख्य न्यायाधीश सतीश चन्द्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने अदालतों में बढ रही व्यक्तिगत, कारोबारी या राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा देने वाली तुच्छ जनहित याचिकाओं को लेकर आगाह किया है.
पीठ ने कहा कि निजी और राजनीतिक एजेंडे से प्रेरित जनहित याचिकाए न केवल न्यायिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता के लिए गंभीर खतरा पैदा करती हैं और कीमती न्यायिक समय को बेकार करती हैं, बल्कि अन्य संस्थानों की विश्वसनीयता को खतरे में डालने और लोकतंत्र एवं कानून के शासन में जनता के विश्वास को कम करने की क्षमता भी रखती हैं.
मुख्य न्यायाधीश की पीठ एक महिला की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताने वाली महिला ने शहर में एक कथित अनधिकृत निर्माण के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी.
याचिका पर सुनवाई करते मुख्य न्यायाधीश सतीशचन्द्र शर्मा ने कहा कि अदालतों को इस बारे में सावधानीपूर्वक पड़ताल करनी चाहिए कि क्या संबंधित व्यक्ति का इसके पीछे कोई निजी मकसद या परोक्ष विचार तो नहीं है.
पीठ ने जनहित याचिकाओं के गंभीर उद्ददेश्य के प्रति सचेत करते हुए कहा कि "जनहित याचिका के आकर्षक ब्रांड नाम का इस्तेमाल शरारत के लिए नहीं किया जाना चाहिए" और ये जनहित के वास्तविक मुद्दों पर आधारित होनी चाहिए.
अदालत ने कहा कि जनहित याचिका की अवधारणा अपनी आवाज न उठा सकने वालों के लिए न्याय सुरक्षित करने के औजार के रूप में की गई थी, लेकिन यह अवधारणा तुच्छ जनहित याचिकाओं से प्रभावित हो रही है और इससे काफी अधिक कीमती समय बर्बाद होता है.