नई दिल्ली: पुलिस से क्यों डरते हैं लोग, यह सवाल हर व्यक्ति के मन में कभी न कभी जरूर आया होगा. इसका आसान सा जवाब यह हो सकता है कि ऐसी कई घटनाएं देखने को मिलती हैं, जहां पुलिस अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल करती है और निर्दोष व्यक्तियों को कारावास में बंद करती है.
कई बार टैक्स कलेक्शन करने वाले अधिकारी भी व्यापारियों को पूछताछ और जांच के बहाने अवैध रूप से हिरासत में ले लेते हैं. ऐसी कार्रवाई के समय, वह ऐसा जताते हैं कि यह सब न्याय और नियम के अनुसार ही हो रहा है. तो आज हम आपको बता दें कि भारतीय कानून के अंतर्गत, इस तरह की कार्यवाही एक अपराध है.
भारतीय दंड सहिंता की धारा 220 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति, किसी ऐसे पद या कार्यालय में होने के नाते, जो उसे किसी अन्य व्यक्ति को परीक्षण के लिए या कैद में रखने के लिए या किसी व्यक्ति को कारावास में रखने का कानूनी अधिकार देता है, लेकिन वह इस अधिकार का भ्रष्ट या दुर्भावनापूर्ण तरीके से इस्तेमाल करता है और वह किसी भी व्यक्ति को मुकदमे के लिए या कैद में रखता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.
IPC की धारा 220 के तहत दोषी पाए जाने पर अपराधी व्यक्ति को 7 साल जेल की सजा और जुर्माने की सजा या दोनों सज़ा से दण्डित किया जा सकता है.
IPC की धारा 220 के तहत अपराध साबित करने के लिए अपराध में इन 3 तत्वों का होना अनिवार्य है:
व्यक्ति के पास अधिकार है कि वह किसी व्यक्ति को मुक़दमे के लिए भेज सकता है या उसे कारावास में कर सकता है.
वह इस अधिकार का इस्तेमाल करता है और
इसके पीछे उसका कोई भ्रष्ट या दुर्भावनापूर्ण तरीका है और उसे यह भी अच्छे से पता था कि वह कानून के विपरीत (contrary to law) काम कर रहा है. दुर्भावनापूर्ण शब्द का अर्थ है कि बिना किसी उचित कारण या किसी दूसरे को हानि पहुंचाने के इरादे से, दुर्भावना या द्वेष के साथ किया गया कार्य.
IPC की धारा 220 के अनुसार परिभाषित अपराध, एक जमानती और असंज्ञेय अपराध है यानी अपराधी को बिना वारंट (Warrant) के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है. इस अपराध में समझौता नहीं किया जा सकता है.
IPC के अनुसार ऐसे व्यक्ति को दंडित किया जाता है जो अपने अधिकारों का दुरुपयोग करता है और निर्दोष व्यक्ति को कारावास में बंद करता है, तो ऐसे अधिकारी को सख्त सज़ा का सामना करना पड़ सकता है.