नई दिल्ली: एक मामले में, हाल ही में महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग (Maharashtra State Human Rights Commission) ने पुलिस से 2.5 लाख रुपये का भारी मुआवजा मांगा है और राज्य के पुलिस महानिदेशक (Director General of Police) को आदेश दिया है कि पुलिस अधिकारियों को संवेदनशील बनाएं। कारण क्या था जिसपर पुलिस को मुआवजा देना पड़ रहा है, जानिए...
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हाल ही में नागपुर के एक कपल को पुलिस ने प्रताड़ित किया जिसके चलते उन्होंने महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग (MSHRC) से शिकायत की। इस शिकायत के आधार पर आयोग ने चार पुलिस अधिकारियों को आदेश दिया है कि वो मिलकर छह हफ्तों के अंदर इस कपल को ढाई लाख रुपये का मुआवजा दें।
आयोग ने यह भी कहा है कि शिकायतकर्ता इन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक अभियोजन (criminal prosecution) भी जारी कर सकते हैं। इस मामले में आयोग ने यह नोट किया है कि पुलिस स्टेशन्स पर इस तरह के मामलों की संख्या में बढ़त देखी गई है।
इस मामले पर अपना फैसला सुनाते समय महाराष्ट्र के मानवाधिकार आयोग ने न सिर्फ नागपुर के पुलिस आयुक्त (Police Commissioner) की निंदा की है बल्कि राज्य के पुलिस महानिदेशक से कहा है कि उन्हें समय-समय पर राज्य के सभी आयुक्तलयों (Commissionerates) विभागों में और सेमिनार रखने चाहिए जिससे पुलिस अधिकारों में संवेदनशीलता बढ़ाई जा सके।
आयोग चाहता है कि इन सेमिनार्स के माध्यम से पुलिस अधिकारियों के मन में, जिन्हें आम जनता 'न्याय के रक्षक' के रूप में देखती है, लोगों और पीड़ितों के प्रति और उनके बात करने के तरीके में जिम्मेदारी की भावना और शिष्टाचार हो।
मामला दरअसल नागपुर की एक वकील अंकिता मखेजा और उनके पति निलेश से जुड़ा है जिन्होंने वकील रिज़्वान सिद्दीकी के जरिए आयोग में शिकायत की थी। उनकी शिकायत के अनुसार मार्च 2020 में अंकिता लकदगंज पुलिस स्टेशन में एक शिकायत दर्ज करने गई थीं क्योंकि उनके पड़ोसी ने एक आवारा कुत्ते पर पत्थर फेंके थे।
शिकायतकर्ता का यह कहना है कि शिकायत दर्ज करने की जगह पुलिस ने उन्हें अवैध रूप से हिरासत में ले लिया और उन्हें शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया। मानवाधिकार आयोग में जब शिकायत दर्ज हुई तो नागपुर पुलिस आयुक्त ने एक रिपोर्ट सबमिट की जिसमें उन्होंने इस घटना की पुष्टि की और यह भी बताया कि उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है और उन्हें ट्रांसफर भी कर दिया गया है।
इसपर आयोग ने आयुक्त से सवाल किया कि भारतीय दंड संहिता के तहत इन पुलिस अधिकरियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई क्यों नहीं हुई है।