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DMK Leader दुरई मुरूगन की मुश्किलें बढ़ी, आय से अधिक संपत्ति के दो मामले में Madras HC ने बरी करने का फैसला पलटा

आज मद्रास हाई कोर्ट ने द्रमुक नेता और मंत्री दुरई मुरुगन और उनकी पत्नी को आय से अधिक संपत्ति के मामले में बरी करने के निचली अदालत के आदेश को खारिज किया है.

Madras HC, DMK Leader दुरई मुरूगन

Written by Satyam Kumar |Published : April 24, 2025 3:30 PM IST

आज मद्रास हाई कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक)के वरिष्ठ नेता और तमिलनाडु सरकार में मंत्री दुरई मुरुगन को बरी करने के स्थानीय अदालत के आदेश को बृहस्पतिवार को पलटते हुए मंत्री व उनकी पत्नी के खिलाफ आरोप तय करने का निर्देश दिया है. दो दिनों में दुरई मुरुगन से जुड़ा यह यह दूसरा मामला है, जिसमें हाई कोर्ट ने इसी तरह का आदेश दिया है.

दो मामलों में बरी करने का फैसला पलटा

जस्टिस पी वेलमुरुगन ने बुधवार को वेल्लोर जिले की एक विशेष अदालत को अलग जांच अवधि (1996-2001) वाले आय से अधिक संपत्ति के मामले में द्रमुक महासचिव और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ कानून के अनुसार आरोप तय करने का निर्देश दिया था. आज जस्टिस वेलमुरुगन ने वेल्लोर की एक विशेष अदालत को दुरईमुरुगन और उनकी पत्नी के खिलाफ जांच अवधि 2007-09 के दौरान आय के ज्ञात स्रोतों से 1.40 करोड़ रुपये अधिक संपत्ति अर्जित करने से संबंधित मामले में आरोप तय करने का निर्देश दिया.

क्या है मामला?

दुरई मुरुगन ने 2006-11 में द्रमुक सरकार के कार्यकाल के दौरान लोक निर्माण विभाग का प्रभार संभाला था. यह मामला 2011 में सतर्कता एवं भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय (डीवीएसी) द्वारा दायर किया गया था और 2017 में वेल्लोर की एक विशेष अदालत ने दंपति को बरी कर दिया था. निदेशालय ने विशेष अदालत के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. जस्टिस ने विशेष अदालत को निर्देश दिया कि वह मामले की रोजाना सुनवाई कर छह महीने के भीतर मामले का निपटारा करे.

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बीते दिन, 2002 में निगरानी और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय (DVAC) द्वारा दर्ज मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने बरी करने का फैसला रद्द कर दिया था, जिसमें आरोप लगाया गया कि दुराई मुरुगन ने 1996 से 2001 तक लोक निर्माण मंत्री रहते हुए अपनी ज्ञात आय से 3.92 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति अर्जित की थी. हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद DVAC की पुनरीक्षण याचिका स्वीकार कर ली. अदालत ने 2007 के बरी करने के फैसले को रद्द करते हुए वेल्लोर विशेष न्यायालय को आरोप तय करने, गवाहों की जांच करने और छह महीने के भीतर मुकदमा पूरा करने का निर्देश दिया.

(खबर पीटीआई इनपुट से है)