Junior Lawyers Stipend: जूनियर वकीलों के लिए मद्रास हाईकोर्ट का 'स्टाइपेंड देना' सुनिश्चित कराने को कहा है. अदालत ने कहा कि वकीलों की पिछली पीढ़ियों की तरह युवा वकीलों बिना स्टाइपेंड के काम कराना अब स्वीकार नहीं है, उन्हें मेहताने के तौर पर कुछ पारिश्रमिक मिलना चाहिए. अदालत ने इस निर्णय के अनुपालन हेतु तमिलनाडु और पुडुचेरी की बार काउंसिल को निर्देश दिया है कि वे सभी बार एसोसिएशनों को सर्कुलर जारी करके राज्य में प्रैक्टिस करने वाले सभी जूनियर वकीलों के लिए न्यूनतम स्टाइपेंड देना अनिवार्य कराएं.
मद्रास हाईकोर्ट में, जस्टिस एस.एम. सुब्रमण्यम और जस्टिस सी. कुमारप्पन की बेंच ने अमुक फैसला सुनाया. उन्होंने कहा कि युवा वकीलों को पिछली पीढ़ियों की तरह संघर्षों के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए. अदालत ने कहा कि युवा वकील के रूप में पीड़ित होना कानूनी पेशे का अभिन्न अंग नहीं है और उनसे बिना स्टाइपेंड के काम कराने की उम्मीद करना स्वीकार करने योग्य नहीं है.
अदालत ने चेन्नई, मदुरै और कोयंबटूर में प्रैक्टिस करने वाले युवा वकीलों को हर महीने न्यूनतम 20,000 रुपये और अन्य जिलों के वकीलों के लिए न्यूनतम 15,000 रुपये का स्टाइपेंड तय किया है. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सभी वकीलों को उनकी लैंगिक पहचान के बावजूद मासिक वेतन दिया जाना चाहिए और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भी इस लाभ का हिस्सा बनाना चाहिए.
बता दें कि अदालत पुडुचेरी संघ में अधिवक्ता कल्याण निधि अधिनियम, 2001 के कार्यान्वयन और प्रवर्तन की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था. सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पहले सुझाव दिया कि बार काउंसिल एक जूनियर वकील को नियुक्त करने के लिए न्यूनतम वजीफा तय करे ताकि उसकी आजीविका सुरक्षित रहे.