सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में तमिलनाडु गवर्नर की ओर से 10 बिल पेंडिंग रखने के तमिलनाडु के गवर्नर के फैसले को गैरकानूनी व मनमाना करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल सीटी रवि को कहा कि आपके पास वीटो पावर नहीं है, जो इस तरह से बिल को दबाए रख सकते थे. ये 10 बिल वो थे, जिन्हें राज्यपाल की ओर से एक बार वापस भेजे जाने के बाद राज्य विधानसभा ने दुबारा राज्यपाल के पास भेजा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह 10 बिल उसी दिन से पास माने जाएंगे, जिस दिन यह दुबारा राज्य विधानसभा की ओर से पास किए जाने के बाद राज्यपाल को भेजे गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गवर्नर दूसरे राउंड में बिल को राष्ट्रपति के लिए रिजर्व नहीं रख सकते है. ऐसी सूरत में उन्हें बिल को मंजूरी देनी होंगी. अगर दूसरी बार चर्चा के बाद राज्यपाल के पास भेजा गया बिल पहले बिल से अलग है, तभी राज्यपाल उस बिल को नामंजूर कर सकते है.
आर्टिकल 200 के मुताबिक जब कोई बिल राज्यपाल के पास भेजा जाता है तो राज्यपाल के पास तीन विकल्प होते है. राज्यपाल चाहे तो बिल को मंजूरी दे सकते है, बिल को नामंजूर कर सकते है या राष्ट्रपति के पास भेज सकते है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि राष्ट्रपति के पास भेजने का विकल्प तभी बचता है, जब बिल पहली बार राज्यपाल के पास भेजा गया हो.
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने गर्वनर के रवैये से नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत होता हैं, उन्होंने अपना ही प्रोसीजर बना लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि विधेयक में ऐसा क्या था कि जिस ढूंढ़ने में गवर्नर को समझने में तीन साल का समय लग गया.
सुनवाई के दौरान जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि राज्यपाल द्वारा बिलों पर सहमति न देने की घोषणा उस समय आई जब सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के राज्यपाल के मामले में यह फैसला सुनाया कि राज्यपाल विधानसभा के बिलों को रोक नहीं सकते. महज तीन दिन के अंतर पर,
अदालत के सामने मौजूद अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने बेंच को बताया कि ये बिल राज्य विश्वविद्यालयों के चांसलर के रूप में राज्यपाल को हटा रहे हैं, जोकि राष्ट्रीय महत्व का मामला है. अटॉर्नी जनरल ने राज्य पर दुर्भावना का आरोप लगाया है.
जस्टिस पारदीवाला ने पूछा, "आपको बताना होगा कि इन बिलों में ऐसा क्या गंभीर था कि उन्होंने (तीन साल) ऐसा किया. वे इतिहास की जांच नहीं करने जा रहे हैं, बल्कि केवल यह देख रहे हैं कि राज्यपाल ने विधायिका द्वारा पारित बारह बिलों पर सहमति क्यों नहीं दी."
AG ने बताया कि गर्वनर की ओर केवल एक साधारण विरोधाभास की घोषणा पर्याप्त है और गवर्नर से 'निबंध' लिखने की उम्मीद नहीं की जा सकती,
इसके बाद जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि आपको हमें विरोधाभास दिखाना होगा. क्या विरोधाभास के नाम पर विधेयकों को रोका जा सकता है? न्यायमूर्ति ने यह भी बताया कि गवर्नर के पास सभी विधेयकों को राष्ट्रपति को संदर्भित करने का विकल्प था, लेकिन उन्होंने केवल दो ही भेजे. न्यायमूर्ति पारदीवाला ने पूछा कि इस तरह से विधेयकों को कब तक रोका जा सकता है?
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने आठ प्रश्न जारी पूछे हैं, जो तमिलनाडु सरकार के वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी की दलीलें सुन रहे हैं. पीठ ने दिन की कार्यवाही की शुरुआत में इन आठ प्रश्नों को सूचीबद्ध किया.
पीठ ने यह भी कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 200 की व्याख्या पर चर्चा करेगी, जो गवर्नर को राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति देने या रोकने की शक्ति देती है. इसके अलावा, पीठ ने यह भी पूछा, "जब एक विधेयक गवर्नर के पास प्रस्तुत किया जाता है और पुनर्विचार के लिए लौटाया जाता है, क्या गवर्नर को एक बार फिर से विधेयक पारित होने पर सहमति देने का दायित्व है?"