चेन्नई सेंट्रल से सांसद व डीएमके नेता दयानिधि मारन को मद्रास हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. मद्रास हाई कोर्ट ने उनकी सांसदी को चुनौती देनेवाली याचिका को खारिज कर दिया है. इस याचिका में दावा किया गया था कि चुनाव खर्चों में डीएमके नेता ने अनियमितताएं बरती और खर्च के बारे चुनाव आयोग को जानकारी देने में सही तथ्यों को छिपाया है. मद्रास हाई कोर्ट में जस्टिस एन आनंद वेंकटेश की पीठ में इस चुनावी याचिका (Election Petition) को सुनवाई के लिए लाया गया है. जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने इस चुनाव याचिका को खारिज कर दिया, जिसे अधिवक्ता एम एल रवि ने दायर किया था, जो खुद भी चेन्नई केंद्रीय निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार थे. जस्टिस ने रिकॉर्ड पर रखे सामग्रियों की जांच करने के बाद कहा कि आरोपों में कोई ठोस जानकारी नहीं थी और यह केवल अनुमान पर आधारित थे. अदालत ने यह भी कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं को भोजन और अन्य सुविधाएं प्रदान करने के आरोप भी बिना किसी ठोस सबूत के थे.
दयानिधि मारन द्वारा दायर जबाव में जस्टिस को बताया गया कि याचिकाकर्ता ने केवल यह अनुमान लगाया है कि आवेदक (दयानिधि मारन) ने निर्वाचन क्षेत्र में घरों पर स्टिकर लगाने के लिए कितना खर्च किया होगा। न्यायाधीश ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं था कि जो स्टिकर घरों पर लगाए गए थे, वे आवेदक से सीधे जुड़े हुए थे. याचिकाकर्ता चाहता था कि अदालत आवेदक द्वारा किए गए अनुमानित खर्च को उसके कुल खर्च में जोड़ दे. जस्टिस ने इसे बहुत दूर की बात बताया और कहा कि इसके लिए कोई ठोस सामग्री उपलब्ध नहीं थी.
जस्टिस ने कहा कि अगला मुद्दा चुनाव याचिकाकर्ता द्वारा बूथ एजेंटों को नाश्ता, दोपहर का भोजन और चाय प्रदान करने के खर्च के बारे में उठाए गए आरोप हैं. उन्होंने कहा कि यह आरोप बिना किसी विशिष्टता के था और यह अधिकतर एक अनुमान के रूप में था. जस्टिस ने यह भी कहा कि ये बूथ एजेंट पार्टी कार्यकर्ता थे, जो अपने राजनीतिक दल के लिए काम कर रहे थे, और अदालत यह नहीं मान सकती कि सभी पार्टी कार्यकर्ताओं को कैडिंडेट द्वारा भोजन और अन्य सुविधाएं प्रदान की गई थीं.
जस्टिस ने कहा कि चुनाव याचिका का अंतिम भाग उन कथनों से संबंधित है, जो उम्मीदवार द्वारा किए गए वास्तविक खर्च और चुनाव आयोग को प्रस्तुत किए गए रजिस्टर और खातों में ठीक से दर्शाए गए खर्च के बीच के असंगति को संबोधित करते हैं. याचिकाकर्ता ने 14 और 15 अप्रैल 2024 को आयोजित एक रैली का उल्लेख किया और इसके लिए वीडियो क्लिपिंग पर भरोसा किया. अदालत ने कहा कि इन वीडियो क्लिपिंग में कहीं भी यह नहीं दिखाया गया है कि आवेदक ने रैली में भाग लिया। बिना किसी सामग्री के, याचिकाकर्ता ने यह मान लिया कि यह रैली आवेदक द्वारा आयोजित की गई थी. याचिका में यह कहा गया था कि दयानिधि मारन ने चुनावी खर्च को सही तरीके से दर्ज नहीं किया, लेकिन जज ने कहा कि प्रस्तुत वीडियो क्लिपिंग्स में यह साबित नहीं होता कि मारन ने रैली में भाग लिया था, जिससे खर्च का कोई आधार नहीं बनता.
जस्टिस ने कहा कि यह स्पष्ट है कि मुख्य चुनाव याचिका में शामिल तर्कों से यह पता चलता है कि याचिकाकर्ता ने किसी खर्च को आवेदक से जोड़ने का प्रयास किया है, जबकि इसके लिए कोई ठोस तथ्य उपलब्ध नहीं थे और यह केवल अनुमानों पर आधारित था. अदालत ने कहा कि इससे यह साबित नहीं होता कि कोई भ्रष्टाचार हुआ था.