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तय सजा से अधिक किसी शख्स को हिरासत में रखना 'असंवैधानिक', HC ने पंजाब सरकार को तीन लाख मुआवजा देने को कहा

इस फैसले में पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि कानून को धन या हैसियत के प्रति अंधा होना चाहिए और सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए, लेकिन व्यवहार में अमीर और गरीब के बीच असमानता देखी जाती है.

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : April 22, 2025 5:11 PM IST

ड्रग तस्करी के केस में एक व्यक्ति को 1 साल 6 महीने की सजा हुई थी. इस फैसले को उसने पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी. अपील पर सुनवाई के दौरान के हाई कोर्ट ने पाया कि शख्स को तय सजा से ज्यादा समय, 2 साल, 3 महीने और 29 दिन, जेल में रहना पड़ा है. अदालत ने इस स्थिति को शख्स के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन पाया. राज्य सरकार को इस चूक के लिए पीड़ित शख्स को तीन लाख का मुआवजा देने के आदेश दिए है. फैसले में पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि राज्य द्वारा की गई यह अन्यायपूर्ण कार्रवाई संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन है और इसके लिए जवाबदेही तय की जानी चाहिए. फैसले के अनुसार, पंजाब सरकार को यह मुआवजा अगले आठ हफ्ते के भीतर देना है. साथ ही मुआवजा देने की रिपोर्ट हाई कोर्ट के सामने रखना है.

कानून को धन या हैसियत के प्रति अंधा होना चाहिए: HC

पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में जस्टिस हरप्रीत सिंह बरार मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य, संवैधानिक मूल्यों का संरक्षक होने के नाते, अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए ज़िम्मेदार है, भले ही वे किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए हों. अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति को उसकी सजा से ज्यादा समय जेल में रखना कानून और न्याय व्यवस्था का उल्लंघन है और यह न्यायिक प्रक्रिया को कमज़ोर बनाता है. हाई कोर्ट स्पष्ट किया कि राज्य चाहे तो उसे मुआवज़े की राशि गलती करने वाले अधिकारियों से वसूल करने की छूट है.

इस मामले में हाई कोर्ट ने सतेंद्र कुमार अंटील बनाम सीबीआई मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाया, जिसमें कहा गया कहा कि अशिक्षा या आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण या किसी को अपने अधिकारों की जानकारी न होना, उसे स्टेट मशीनरी की कमियों का शिकार नहीं बनने देना चाहिए. हाई कोर्ट ने पाया कि इस मामले में, दोषी की आर्थिक स्थिति के कारण उसे ज़रूरत से ज़्यादा समय तक हिरासत में रहना पड़ा है. हाई कोर्ट ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से भी निराशा व्यक्त की. अदालत ने कहा कि कानूनी सहायता की पहुंच आर्थिक स्थिति पर निर्भर नहीं होनी चाहिए और गरीबों को भी समय पर कानूनी सहायता मिलनी चाहिए ताकि उन्हें अनावश्यक रूप से जेल में नहीं रहना पड़े. पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि कानून को धन या हैसियत के प्रति अंधा होना चाहिए और सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए, लेकिन अमीर और गरीब के बीच असमानता देखने को मिलती है.अपीलकर्ता की लंबी अवधि तक अवैध हिरासत, वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण हुई, जिससे वह जेल अधिकारियों के रहमोकरम पर रहा.

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क्या है मामला?

याचिकाकर्ता सतनाम सिंह के खिलाफ साल 2002 में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस एक्ट) की धारा 15 के FIR दर्ज कराई गई थी. 2006 में उसे दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई गई. शख्स ने इसी फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी.

सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता द्वारा ले जाए जा रहे बैग से प्रतिबंधित पदार्थ बरामद किया गया था और व्यक्तिगत तलाशी का कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है.

सुनवाई के दौरान, जस्टिस हरप्रीत सिंह बरार ने इस बात पर प्रकाश डाला कि हिरासत प्रमाण पत्र के अवलोकन से पता चलता है कि अपीलकर्ता ने 02 वर्ष, 03 महीने और 29 दिन हिरासत में बिताए हैं, जबकि उसे इस मामले में केवल 01 वर्ष और 06 महीने के कारावास की सजा सुनाई गई थी. यहां तक ​​कि अगर जुर्माना अदा न करने के लिए दी गई 03 महीने की सजा पर भी विचार किया जाए, तो अपीलकर्ता को हिरासत में रखने की अधिकतम अवधि 01 वर्ष 09 महीने थी. अदालत ने कहा कि राज्य के वकील कोई ऐसा कारण नहीं बता पाए, जिससे अपीलकर्ता को वारंट से अधिक समय तक हिरासत में रखने का औचित्य सिद्ध हो सके, जिसके बाद अदालत ने आरोपी व्यक्ति को तीन लाख रूपये का मुआवजा देने को कहा है.

केस टाइटल: सतनाम सिंह बनाम पंजाब राज्य