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विधिक शिक्षा का पाठ्यक्रम बार काउंसिल की ओर से तय किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण: Kerala HC

न्यायमूर्ति मुश्ताक ने कहा कि मुकदमेबाजी कानूनी पेशे का एक छोटा सा हिस्सा है और किसी की क्षमता और भविष्य की स्थिति उसके विचारों पर निर्भर करती है और वह बदलते समय के प्रति कैसे प्रतिक्रिया जताता है।

Kerala HC Justice Mustaque Statement on BCI Dictating Law Courses Syllabi Criticised

Written by My Lord Team |Updated : June 21, 2023 9:38 AM IST

नई दिल्ली: केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) के एक न्यायाधीश ने कहा है कि विधि महाविद्यालयों के लिए विधिक शिक्षा का पाठ्यक्रम बार काउंसिल द्वारा निर्धारित किया जाना देश के लिये ‘‘सबसे बड़ी त्रासदी’’ है। इस टिप्पणी की बार काउंसिल ऑफ इंडिया (Bar Council of India) की ओर से तीखी आलोचना की गई और टिप्पणी को ‘‘गैर जिम्मेदाराना’’ करार दिया गया।

केरल HC के न्यायाधीश ने कही ये बात

न्यायमूर्ति मुश्ताक मुहम्मद ने युवा वकीलों के लिए परामर्श देने वाले मंच- 'ज्यूरिस ट्रेलब्लेजर्स' (Juris Trailblazers) की ऑनलाइन शुरुआत के मौके पर रविवार को कहा था कि बार काउंसिल के कुछ निर्वाचित अधिकारी यह तय कर रहे हैं कि देश के विधि महाविद्यालयों को क्या पढ़ाना चाहिए और यह ‘‘सबसे बड़ी त्रासदी और चुनौती’’ है, जिसका भारत सामना कर रहा है।

समाचार एजेंसी भाषा (Bhasha) के अनुसार, उन्होंने यह भी कहा कि जो बार काउंसिल में हैं, वे केवल मुकदमे से जुड़े पेशेवर हैं, जिनका क्षेत्र ज्ञान केवल मुकदमे से संबंधित है, जिन्हें इस बात का अंदाजा नहीं है कि इससे आगे क्या हो रहा है।

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उन्होंने बोला, ‘‘किसी भी महाविद्यालय को अपने पाठ्यक्रम तय करने की स्वायत्तता नहीं है और यदि वे बार काउंसिल द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम का पालन नहीं करते हैं, तो निश्चित रूप से उन्हें किसी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा और उन्हें मान्यता नहीं दी जाएगी।’’

उन्होंने कहा कि चूंकि विधि महाविद्यालय पाठ्यक्रम तय नहीं कर सकते, वहां से निकलने वाले छात्र पाठ्यक्रम से परे नहीं सोच सकते और ऐसे ज्ञान में ‘‘फंस’’ जाते हैं जो रूढ़िवादी है।

न्यायमूर्ति मुश्ताक ने कहा, ‘‘जब वे बाहर आते हैं, तो वे सिर्फ वकीलों और विधिक फर्म के रास्ते का अनुसरण करते हैं और यहीं पर वे विफल हो जाते हैं।’’ उन्होंने कहा कि मुकदमेबाजी कानूनी पेशे का एक छोटा सा हिस्सा है और किसी की क्षमता और भविष्य की स्थिति उसके विचारों पर निर्भर करती है और वह बदलते समय के प्रति कैसे प्रतिक्रिया जताता है।

उन्होंने कहा,‘‘आपके लिए विधि महाविद्यालय से ज्ञान प्राप्त करना काफी कठिन है क्योंकि उनका पाठ्यक्रम इस तरह से तय किया गया है कि आप पाठ्यक्रम से परे नहीं सोच सकते।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब आप एक विधि महाविद्यालय से निकलते हैं, तो आपको नए तरीके से सोचने की ज़रूरत होती है।’’

न्यायाधीश की टिप्पणी की आलोचना

न्यायमूर्ति मुश्ताक की टिप्पणी की बीसीआई (BCI) द्वारा आलोचना और "कड़ी निंदा" की गई और उसने टिप्पणी को ‘‘विचित्र’’ और ‘‘गैर-जिम्मेदाराना’’ करार दिया। बीसीआई के सह-अध्यक्ष वेद प्रकाश शर्मा द्वारा जारी एक बयान में कहा गया, ‘‘सिर्फ इसलिए कि वह एक न्यायाधीश हैं, उन्हें किसी के या किसी संगठन के बारे में उचित जानकारी के बिना कोई टिप्पणी करने की स्वतंत्रता नहीं है।’’

बीसीआई ने कहा कि उसके निर्वाचित प्रतिनिधियों ने कानूनी शिक्षा से जुड़े मामलों के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है। बयान में कहा गया, ‘‘बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पास देश की कानूनी शिक्षा से संबंधित मामलों के लिए एक अलग निकाय है। समिति की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश करते हैं और इसके सह-अध्यक्ष के रूप में उच्च न्यायालयों के दो वर्तमान मुख्य न्यायाधीश हैं।’’

बीसीआई ने कहा कि कानूनी शिक्षा की नीतियां और मानदंड उच्चस्तरीय समिति द्वारा तय किए जाते हैं, जिसमें वकीलों के निकाय के केवल पांच निर्वाचित सदस्य होते हैं। उसने कहा, ‘‘इस प्रकार, निर्णय वस्तुतः न्यायाधीशों और कानून के शिक्षकों द्वारा लिए जाते हैं। विधि शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए निर्वाचित निकाय ने अनुभवी शिक्षकों और तकनीकी रूप से उन्नत लोगों को उन्नत प्रौद्योगिकी के साथ तालमेल रखने के लिए शामिल किया है।’’