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'कानून बनाने के पीछे की मंशा अच्छी हो लेकिन प्रभाव असंवैधानिक, तो इसे हटाना होगा': बंबई उच्च न्यायालय

आईटी नियमों में हुए संशोधन के खिलाफ बंबई उच्च न्यायालय में कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स ने याचिका दायर की। इसकी सुनवाई के दौरान अदालत ने एक महत्वपूर्ण बात कही है...

Bombay HC Statement during Hearing of Petition against IT Rules

Written by Ananya Srivastava |Published : July 7, 2023 9:31 AM IST

मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने बृहस्पतिवार को कहा कि नियम बनाते समय मंशा कितनी भी अच्छी क्यों न हो, अगर किसी नियम या कानून का प्रभाव असंवैधानिक है तो उसे हटाना ही होगा।

न्यायमूर्ति गौतम पटेल (Justice Gautam Patel) और न्यायमूर्ति नीला गोखले (Justice Neela Gokhale) की खंडपीठ ने हाल ही में संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी नियमों (IT Rules) को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

संशोधित नियमों के तहत, केंद्र को सोशल मीडिया में सरकार के खिलाफ फर्जी खबरों (फेक न्यूज) की पहचान करने का अधिकार है।

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Bombay HC में आईटी नियमों के खिलाफ दायर हुई याचिका

समाचार एजेंसी भाषा, के हिसाब से हास्य कलाकार कुणाल कामरा (Kunal Kamra), एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (Editors Guild of India) और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स (Association of Indian Magazines) ने संशोधित नियमों के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हुए उन्हें मनमाना, असंवैधानिक बताया था। याचिकाओं में दलील दी गई है कि संशोधित नियमों का नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर "खतरनाक प्रभाव" होगा।

इन तीन याचिकाओं में अदालत से अनुरोध किया गया है कि वह संशोधित नियमों को असंवैधानिक घोषित कर दे और सरकार को नियमों के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई से रोकने का निर्देश दे।

कामरा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील नवरोज सीरवई ने बृहस्पतिवार को सुनवाई के दौरान कहा कि संशोधित नियम के जरिये केंद्र सरकार यह कहना चाहती है कि ‘‘मेरी बात मान लें, अन्यथा दफा हो जाएं।’’ उन्होंने कहा, "सरकार कह रही है कि वह सुनिश्चित करेगी कि सोशल मीडिया में वही चीज आए जो सरकार चाहती है और जिसे वह (सरकार) सच मानती है...।’’

याचिकाकर्ता की तरफ से यह भी कहा गया कि सरकार जनता के माता-पिता या अभिभावकों की भूमिका निभाना चाहती है। सीरवई ने कहा, ‘‘अपने नागरिकों की बुद्धिमत्ता को लेकर सरकार की इतनी निम्न राय क्यों है कि उनके साथ अभिभावक जैसा व्यवहार किया जाए। क्या सरकार को जनता पर इतना कम भरोसा है कि उसे अभिभावक की भूमिका निभानी पड़ रही है।’’

उन्होंने कहा कि संशोधित नियम नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं और अदालत को विचार करना चाहिए कि क्या इसके प्रभाव असंवैधानिक हैं।

इस पर न्यायामूर्ति पटेल ने कहा, ''मंशा कितनी भी अच्छी क्यों न हो, अगर प्रभाव असंवैधानिक होंगे तो इसे हटाना ही होगा।''

केंद्र ने संशोधित किया सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021

केंद्र सरकार ने इस साल छह अप्रैल को, सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में कुछ संशोधनों की घोषणा की थी, जिनमें सरकार से संबंधित फर्जी, गलत या गुमराह करने वाली ऑनलाइन सामग्री की पहचान के लिए तथ्यान्वेषी इकाई का प्रावधान भी शामिल हैं।

केंद्र सरकार ने इससे पहले अदालत को आश्वासन दिया था कि वह 10 जुलाई तक तथ्यान्वेषी इकाई को अधिसूचित नहीं करेगी।