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Gyanvapi Masjid के व्यासजी तहखाने में हिंदुओं की पूजा रहेगी जारी, Allahabad High Court ने खारिज की मुस्लिम पक्ष की याचिका

ज्ञानवापी मस्जिद के व्यासजी तहखाने में पूजा- अर्चना पर रोक की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट करेगी सुनवाई.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के व्यासजी तहखाने में हिंदूओं द्वारा की जाने वाली पूजा पर रोक लगाने की मांग हेतु दायर मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया है.

Written by My Lord Team |Published : February 26, 2024 1:39 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court)  ने हिंदुओं को ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) के व्यासजी तहखाने में पूजा करने पर रोक की मांग वाली याचिका खारिज की. यह याचिका अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमिटी (Anjuman Intezamia Masjid Committee) दायर की थी. याचिका में वाराणसी कोर्ट (Varanasi Court) के उस फैसले को चुनौती दी गई, जिसमें हिंदू पक्ष को ज्ञानवापी मस्जिद के व्यासजी तहखाने (Vyasji Tehkhana) में पूजा करने की इजाजत दी गई थी. 

Single-Judge Bench ने सुनाया फैसला

जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने मुस्लिम पक्ष की मांग को खारिज किया. सिंगल-जज बेंच ने 15 फरवरी के दिन ही इस मामले की सुनवाई पूरी कर ली थी और आज (26 फरवरी 2024) के दिन अपना फैसला सुनाया है. 

'DM' के रिसीवर बनाने पर उठे थे प्रश्नचिन्ह

मुस्लिम पक्ष की ओर से सीनियर एडवोकेट सैयद फरहान अदमद नकवी (SFA Naqvi) ने बहस की थी. नकवी ने बहस के दौरान कहा था कि सीपीसी की धारा 151, 152 को हिंदू पक्ष ने सही से नहीं रखा. नकवी ने कहा जिला जज के आदेश में भी खामी है. उन्होंने डीएम को रिसीवर के तौर नियुक्त किया है, जो पहले से ही काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के पदेन सदस्य है. ऐसे में उन्हें रिसीवर नियुक्त करना तर्कसंगत नहीं था.

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हिंदू पक्ष ने दिया था ये तर्क 

हिंदू पक्ष की ओर से वकील विष्णु शंकर जैन ने बचाब करते हुए कहा कि व्याजसी तहखाने में शुरू से ही पूजा हो रही थी. ये पूजा सोमनाथ व्यास और उसके परिवार के लोग करते थे. साल 1992 में मुलायम यादव की सरकार ने इस पूजा पर पाबंदी लगाई थी. वहीं, मुस्लिम पक्ष ने इस बात जताते हुए कहा, ज्ञानवापी मस्जिद शुरू से ही उनके अधिकार क्षेत्र में था.

कहां से उपजा?

ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque)  उत्तर प्रदेश के वाराणसी (बनारस) में है. जिसका निर्माण औरंगजेब ने करवाया था. मुगल शासक औरंगजेब ने साल, 1669 में जगह पर पहले से स्थित शिव मंदिर को तोड़कर बनवाया था. मूल रूप से इस स्थान पर विश्वेश्वर मंदिर था.