दिल्ली की एक अदालत ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत एक महिला को मासिक अंतरिम भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया है. महिला के अंतरिम गुजारा भत्ते की मांग से इंकार करते हुए अदालत ने कहा कि वह अपना भरण-पोषण करने में पूरी तरह सक्षम है और उसे पति से अलग हुए कुछ ही महीने हुए है. ऐसे में वह गुजारा भत्ते की हकदार नहीं है.
न्यायिक मजिस्ट्रेट गीता अंतरिम भरण-पोषण की मांग करने वाली महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. जज ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वैवाहिक विवाद में, दोनों पक्ष एक-दूसरे की कमियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते है. साथ ही अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करना पति का नैतिक कर्तव्य है, और वह इससे बच नहीं सकता है.
अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता एक केंद्रीय मंत्रालय के कार्यालय में काम कर रही है और प्रति माह 43,000 रुपये से अधिक कमाती है और महिला पति के साथ केवल कुछ महीनों के लिए ही रही थी.
जज ने फैसला सुनाया,
"याचिकाकर्ता अंतरिम भरण-पोषण के अनुदान की हकदार नहीं है क्योंकि वह अपना भरण-पोषण करने में पूरी तरह सक्षम है. तदनुसार, अंतरिम भरण-पोषण के लिए राहत अस्वीकार की जाती है."
अदालत ने महिला को अंतरिम गुजारा भत्ते दिलाने से इंकार किया.