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क्या कंज्यूमर फोरम को गिरफ्तारी वारंट जारी करने का अधिकार है? लोन पर ट्रैक्टर खरीदने के मामले में Calcutta HC ने बताया

कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा है कि उपभोक्ता फोरम किसी निष्पादन कार्यवाही में गिरफ्तारी का वारंट जारी नहीं कर सकता है और वह केवल सिविल जेल में हिरासत का आदेश दे सकता है.

कलकत्ता हाईकोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : April 7, 2025 5:19 PM IST

हाल ही में कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा है कि उपभोक्ता फोरम किसी निष्पादन कार्यवाही में गिरफ्तारी का वारंट जारी नहीं कर सकता है और वह केवल सिविल जेल में हिरासत का आदेश दे सकता है. जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम के उस आदेश को चुनौती देने वाली एक अर्जी पर फैसला सुनाया गया, जिसके तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया गया था. अर्जी पर सुनवाई में जस्टिस शुभ्रा घोष ने कहा कि कानून फोरम को अपने आदेश के प्रवर्तन के लिए दंड प्रक्रिया संहिता के तहत ऐसा वारंट जारी करने का अधिकार नहीं देता है.

कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा कि इसमें कानूनी मुद्दा यह है कि क्या उपभोक्ता फोरम को गिरफ्तारी वारंट जारी करने का अधिकार है. हाई कोर्ट ने अपने डिवीजन बेंच के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि साल 2022 में कहा था कि उपभोक्ता आयोग अपने आदेश के प्रवर्तन में गिरफ्तारी का वारंट जारी नहीं कर सकता है. कलकत्ता हाई कोर्ट में जस्टिस घोष ने याचिकाकर्ता के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में निर्धारित प्रावधान के दायरे से बाहर है.

लोन पर ट्रैक्टर खरीदने का मामला

यह मामला 2013 में ट्रैक्टर की खरीदने के लिए एक वित्त कंपनी और एक शख्स के बीच लोन समझौते से शुरू हुआ था. ऋण लेने वाले ने कंपनी को 25,716 रुपये का भुगतान नहीं किया, जिसके लिए कंपनी ने वाहन को अपने कब्जे में ले लिया था. इसके बाद ऋण लेने वाले ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराई. ऋण लेने वाले ने प्रतिवादी को ट्रैक्टर का पंजीकरण प्रमाण पत्र सौंपने तथा वाहन को उसके पक्ष में जारी करने का निर्देश देने की मांग की.

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कंज्यूमर फोरम ने जारी किया वारंट

फोरम ने प्रतिवादी को निर्देश दिया था कि वह शिकायतकर्ता से 25,716 रुपये की बकाया राशि प्राप्त करने के बाद ट्रैक्टर का पंजीकरण प्रमाण पत्र उसे सौंप दे. तब व्यक्ति द्वारा एक निष्पादन मामला दायर किया गया था और आयोग ने 13 दिसंबर 2019 के आदेश के माध्यम से याचिकाकर्ता के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया.

Execution Case: यह मुकदमा अदालत के आदेश को लागू कराने के लिए की जाती है. इसमें ऋणी को आदेश की शर्तों को पूरा करने के लिए बाध्य किया जाता है, जिसमें भुगतान या संपत्ति हस्तांतरण शामिल हो सकता है. इसे ध्यान में रखते हुए खरीदार ने कार्यान्वयन का मामला (Execution Case) दायर किया, और 19 दिसंबर 2019 को शाखा प्रबंधक के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया. तब शाखा प्रबंधक (Brach Manager) ने कलकत्ता हाई कोर्ट में याचिका दायर कर इस गिरफ्तारी वारंट पर रोक लगाने की मांग करते हुए दावा किया कि उसे इस मामले की कोई जानकारी नहीं थी. वह न तो किसी भी कार्यवाही का हिस्सा था और न ही उसे गिरफ्तारी वारंट जारी होने के समय तक इसकी जानकारी थी. तब कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा कि कंज्यूमर फोरम को सिविल जेल में रकने के आदेश देने का अधिकार है, ना कि गिरफ्तारी वारंट जारी करने का.