Delhi riots 2020: पुलिस के चार्जशीट फाइल करने के बाद अदालत में फ्रेमिंग ऑफ चार्जेस की प्रक्रिया की जाती है. दिल्ली दंगे के मामले में चार्जशीट दाखिल करने के बाद आज साकेत कोर्ट ने शरजील इमाम, आशु खान, चंदन कुमार, आशिफ इकबाल तन्हा सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ चार्जेस तय किए. इन्ही चार्जेस के आधार पर इन आरोपियों के खिलाफ आगे मुकदमा चलेगा. साकेत कोर्ट ने मामले में 15 आरोपियों को आरोपों से बरी भी किया है. अदालत ने आरोप तय करते वक्त कहा कि रिकॉर्ड पर रखे सामग्रियों से पता चलता है कि शरजील इमाम ने ना केवल दंगे भड़काने वाला भाषण दिया बल्कि वह बड़े षडयंत्र का किंगपिन भी था. आइये जानते हैं कि दोनों पक्षों ने क्या कहा और अदालत ने क्या फैसला सुनाया...
आरोपी शरजील इमाम का तर्क है कि वह 15/12/2019 को हुई अवैध सभा का हिस्सा नहीं थे, जिस दिन दंगे की घटना हुई. उन्होंने यह भी कहा है कि उनकी भाषण से जनता को हिंसक गतिविधियों में शामिल होने के लिए उकसाया नहीं गया. इमाम का कहना है कि उनके भाषण में किसी भी प्रकार की दुश्मनी, नफरत, या विभिन्न धार्मिक, जातीय, या सामुदायिक समूहों के बीच असहमति को बढ़ावा नहीं दिया गया. इसलिए उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153A उनके खिलाफ लागू नहीं होती. एक वैकल्पिक तर्क के रूप में, इमाम के वकील ने यह भी कहा कि उनके खिलाफ एक अलग मामला, FIR संख्या 22/2020, 25/02/2020 को दर्ज किया गया था. इसमें धारा 124A, 153A, और 505 के तहत आरोप लगाए गए हैं. इस स्थिति में, उन्हें इस मामले में धारा 153A के तहत आरोपित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह 'डबल ज्यूपार्डी' के सिद्धांत का उल्लंघन होगा. इस मामले में, इमाम का तर्क है कि उन्हें दो बार एक ही अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता। यह कानूनी प्रक्रिया के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन होगा. हालांकि, अदालत ने इस आपत्ति पर आगे की सुनवाई में इन तर्कों पर विचार करने का आश्वासन दिया है.
शरजील इमाम के दावों के विरोध में पब्लिक प्रोसीक्यूटर (सरकारी वकील) ने 13 दिसंबर 2019 को दिए उनके भाषण के ट्रांसक्रिप्ट को आधार बनाया. विशेष लोक अभियोजक ने तर्क दिया कि उनके भाषण का मुख्य लक्ष्य मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को भड़काना था, जिससे वे उत्तरी भारत के सभी राज्यों में एक बड़े मुस्लिम आंदोलन का निर्माण कर सकें. विशेष लोक अभियोजक ने कहा कि शरजील इमाम ने अपने भाषण में मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को यह कहकर भड़काया कि उनके पास उत्तरी भारत के विभिन्न राज्यों में एक महत्वपूर्ण मुस्लिम जनसंख्या है, फिर भी वे क्यों चक्का जाम नहीं कर रहे हैं. भाषण में इमाम ने यह भी कहा कि हजारों मुस्लिम लोग सरकारी हिरासत में हैं, जिससे मुस्लिम समुदाय में भय का वातावरण उत्पन्न हुआ. इस प्रकार की भ्रामक जानकारी ने समुदाय के भीतर असुरक्षा की भावना को बढ़ावा. हालांकि शरजील इमाम का भाषण पहली नज़र में एक शांतिपूर्ण सार्वजनिक आंदोलन की ओर संकेत करता है, लेकिन इसके पीछे एक गहरी नफरत की भावना छिपी हुई है. आरोपी ने मुस्लिम समुदाय में गुस्से और नफरत की भावना को खुलकर उकसाया. उन्होंने सार्वजनिक जीवन में बड़े पैमाने पर व्यवधान उत्पन्न करने के लिए मुस्लिम समुदाय को प्रेरित किया.
विशेष लोक अभियोजक ने कहा कि इमाम का भाषण स्पष्ट रूप से नफरत भड़काने वाला था. उन्होंने धार्मिक आधार पर एक समुदाय को दूसरे समुदाय के खिलाफ खड़ा करने का प्रयास किया. यह न केवल एक घृणा भाषण था, बल्कि यह हिंसक भी था, जिससे समाज में विभाजन की भावना बढ़ी. इमाम ने अपनी सामुदायिक भाषण के माध्यम से हिंसक भीड़ की गतिविधियों को उकसाकर अपराध की धाराओं का उल्लंघन किया है. भारतीय दंड संहिता की धारा 109 और 153A के तहत उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सकती है.
साकेत कोर्ट में एडिशनल सेशन जज विशाल सिंह ने दोनों पक्षों की बात सुनकर फ्रेमिंग ऑफ चार्जेस की प्रक्रिया शुरू की. साकेत कोर्ट ने कहा कि शरजील इमाम एक पीएच.डी. छात्र के छात्र है और उन्होंने अपने भाषण में केवल मुस्लिम समुदाय का जिक्र किया, जबकि उनका असली उद्देश्य अन्य समुदायों के सदस्यों को टार्गेट करना था. शरजील इमाम का भाषण न केवल भड़काऊ था, बल्कि यह समुदायों के बीच नफरत को बढ़ाने वाला भी था. उन्होंने मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को उकसाया कि वे सार्वजनिक जीवन में व्यापक स्तर पर रुकावट डालें. इमाम का भाषण सुनकर यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने जानबूझकर मुस्लिम समुदाय में गुस्से और नफरत की भावना को जगाने का प्रयास किया.
इमाम के भाषण का एक स्वाभाविक परिणाम था कि भीड़ ने सार्वजनिक सड़कों पर हिंसा की। यह कहना गलत नहीं होगा कि उनका भाषण एक प्रकार की नफरत भरी भाषा थी, जिसने एक धर्म को दूसरे धर्म के खिलाफ खड़ा कर दिया. इमाम पर भारतीय दंड संहिता की धारा 109 और धारा 153A के तहत आरोप तय किए गए हैं. इन धाराओं के तहत, किसी भी व्यक्ति को जो हिंसक गतिविधियों को उकसाता है, उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है. अदालत ने कहा कि इमाम ने न केवल भड़काने का कार्य किया, बल्कि एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा बनकर हिंसा को बढ़ावा दिया.
दिल्ली जैसे जनसंख्या घनत्व वाले शहर में चक्का जाम का अर्थ है कि कई गंभीर रूप से बीमार मरीजों को अस्पतालों तक पहुँचने में कठिनाई होगी. यह स्थिति उनके स्वास्थ्य को और बिगाड़ सकती है, जो कि एक गंभीर अपराध है. अदालत ने साफ कहा कि आरोपी शरजील इमाम ने ना केवल हिंसा भड़काया बल्कि वह हिंसा भड़काने की बड़ी साजिश का किंगपिन भी रहा.
आरोपी शरजील इमाम पर आईपीसी की धारा 109, 120बी और आईपीसी की धारा 153ए के साथ धारा 143/147/148/149/186/353/332/333/308/427/435/323/341 आईपीसी और सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम की धारा धारा 3/4 के तहत आरोप तय किए गए हैं.
इस दौरान अदालत ने 15 आरोपियों को बरी करते हुए कि केवल मोबाइल स्थान डेटा उनकी भागीदारी को स्थापित करने के लिए अपर्याप्त है. अदालत ने ने स्पष्ट किया कि मोबाइल फोन का स्थान किसी व्यक्ति को आपराधिक जिम्मेदारी में शामिल या मुक्त करने के लिए अकेले इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.