दिल्ली हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने 21 फरवरी को लॉ स्टूडेंट्स की याचिका खारिज की. दिल्ली लॉ यूनिवर्सिटी की छात्रा ने अदालत से कम अटेंडेंस के चलते परीक्षा में बैठने देने को राहत की मांग की थी. दिल्ली उच्च न्यायालय ने लॉ स्टूजडेंट्स को सलाह देते हुए कहा कि पेशेवर डिग्री पाठ्यक्रमों में छात्रों को अपनी पढ़ाई को गंभीरता से लेना चाहिए. यह न केवल उनके भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उनके पेशेवर जीवन में भी सफलता की कुंजी है. छात्रों को चाहिए कि वे अपने अध्ययन को प्राथमिकता दें और अपने समय का सही उपयोग करें.
हाई कोर्ट ने कहा कि पेशेवर डिग्री पाठ्यक्रमों में छात्रों को पूरी गंभीरता से अध्ययन करना चाहिए. न्यायालय ने यह भी कहा कि उपस्थिति की कमी को सामान्यतः केवल मांग करने पर माफ नहीं किया जा सकता, जब तक कि कोई उचित आपातकालीन या अन्य परिस्थिति सामने ना हो. अदालत ने गौर किया कि छात्रा को उपस्थिति की कमी की जानकारी थी जब उसने समय पर फीस जमा की थी. रिकॉर्ड के अनुसार, उसने सुधारात्मक कक्षाओं में भाग लेने के बावजूद केवल 54 प्रतिशत उपस्थिति दर्ज की थी.
मामले में, छात्रा ने दावा किया कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के फैकल्टी ऑफ लॉ से एलएलबी कर रही है और तीसरे सेमेस्टर में नामांकित है. 22 दिसंबर 2024 को, अधिकारियों ने एक अस्थायी सूची जारी की, जिसमें उन सभी छात्रों का नाम था जो न्यूनतम उपस्थिति मानदंड (Minimum Attendence Criteria) को पूरा नहीं कर पाए थे. छात्रा का नाम 4 जनवरी को परीक्षा शामिल हो सकने वाले छात्रों की अंतिम सूची में शामिल किया गया, हालांकि वह अस्थायी सूची में नहीं थी.
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार, किसी सेमेस्टर इक्जाम में भाग लेने के लिए 70 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य है. एकल न्यायाधीश ने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित उपस्थिति का प्रतिशत अटूट है और इसे किसी भी तरह से कम नहीं किया जा सकता. साथ ही इस मामले में यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि एलएलबी पाठ्यक्रम एक पेशेवर डिग्री है, जो नियमित डिग्री पाठ्यक्रमों की तुलना में अधिक गंभीरता की मांग करता है.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि पेशेवर डिग्री पाठ्यक्रमों में सफलता के लिए अनुशासन और गंभीरता आवश्यक है. यदि छात्र उपस्थिति मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं, तो उन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी जाएगी. यह निर्णय न केवल छात्रों को बल्कि शैक्षणिक संस्थानों को भी यह याद दिलाता है कि पेशेवर शिक्षा में गुणवत्ता बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है.