नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने हाल ही में केंद्र सरकार के हज यात्रा से जुड़े एक फैसले पर रोक लगाया है और उनका यह कहना है कि भारतीय संविधान के तहत आने वाले धार्मिक अधिकारों में हज यात्रा भी शामिल है। क्या था मामला और कोर्ट ने ऐसी टिप्पड़ी क्यों की, जानिए...
एक फैसला सुनाते समय दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश चंद्रधारी सिंह (Justice Chandra Dhari Singh) ने कहा कि हज यात्रा और उससे जुड़े संस्कार 'धार्मिक अभ्यास' (Religious Practice) के अंतर्गत आते हैं जो भारत के संविधान के तहत संरक्षित है।
जस्टिस चंद्रधारी सिंह का यह कहना है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत, देश के हर नागरिक को अंतःकरण और अपने हिसाब से किसी भी धर्म के आचरण, अभ्यास और प्रचार की स्वतंत्रता मिलती है। यह स्वतंत्रता एक बहुत बड़ा अधिकार है और इसके अंतर्गत हज यात्रा भी आती है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि याचिकाकर्ता के अनुसार पिछले महीने केंद्र सरकार ने हज 2023 (Haj 2023) हेतु हज कोटा (Haj Quota) के आवंटन के लिए एक समेकित सूची जारी की थी। साथ ही सरकार ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एक टिप्पणी भी प्रकाशित की थी जो यह थी कि 'शिकायत संबंधी मामले में कार्यवाही को अंतिम रूप देने तक पंजीकरण प्रमाणपत्र और कोटा स्थगित रखा गया है'।
कुछ चुनिंदा हज ग्रुप ऑर्गनाइजर्स ने कोर्ट में अपने पंजीकरण प्रमाणपत्र और कोटा के लिए याचिका दायर की थी जिसमें जस्टिस सिंह ने कोर्ट के आदेश को स्थगित कर दिया है।
बता दें कि इसपर केंद्र ने अदालत से कहा है कि वो कुछ HGOs के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने वाली है जिसमें उन्हें ब्लैकलिस्ट करने और उनके पंजीकरण को रद्द करने का भी प्लैन है। सरकार इन गैर-संगत (Non-Compliant) एचजीओ के साथ मासूम हज यात्रियों की सुरक्षा को जोखिम में डालने को राजी नहीं है।
दोनों पक्षों की बातें सुनने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने यह कहा है कि सरकार पंजीकरण प्रमाणपत्र और कोटा आवंटन पर अपनी शर्तें लगा सकती है लेकिन इसका असर उन यात्रियों पर नहीं पादन चाहिए जिन्होंने इन HGOs के साथ हज यात्रा के लिए पंजीकरण किया था।
चुकी ऐसा करने से हज योजना (Haj Yojna) का उद्देश्य खत्म हो जाएगा और यह संविधान के अनुच्छेद 25 का अपमान होगा, इसी के चलते हाईकोर्ट ने केंद्र के फैसले पर रोक लगा दिया है।