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'हाई कोर्ट के एक जज के फैसले को दूसरा जज नहीं बदल सकते', अवमानना मामले में Supreme Court की अहम टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बार हाई कोर्ट के किसी न्यायाधीश द्वारा किसी पक्ष को अवमानना का दोषी पाए जाने के बाद, उसी अदालत के अन्य सिंगल जज यह पुनः सुनवाई नहीं कर सकते.

FILE : Supreme Court of India in New Delhi

Written by Satyam Kumar |Published : April 25, 2025 11:07 AM IST

अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट जजों के रवैये से चिंता जताते हुए कहा कि जब एक जज पहले ही अवमानना का फैसला सुना चुके हैं, तो फिर अन्य सिंगल जज की बेंच उस मामले पर कैसे विचार कर सकती है. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि जब एक ही अदालत के एक न्यायाधीश ने प्रतिवादी को अवमानना का दोषी मानते हुए एक विशेष दृष्टिकोण अपनाया है, तो उसी हाई कोर्ट के अन्य सिंगल जज बेंच यह दोबारा नहीं जांच सकता कि क्या वास्तव में अवमानना की गई थी या नहीं ऐसा करना न्यायिक शिष्टाचार का उल्लंघन और अधिकार क्षेत्र से परे है.

सिंगल जज के फैसले के खिलाफ

शीर्ष अदालत ने स्पष्ट कहा कि एक ही न्यायालय के दो जजों के बीच समन्वय बनाए रखना महत्वपूर्ण है और एक न्यायाधीश के आदेश पर दूसरे न्यायाधीश द्वारा पुनर्विचार करना अनुचित है. अदालत ने यह भी कहा कि अगर सिंगल जज सुनवाई करते हैं तो उनके पास केवल यह विचार करने का ऑप्शन होता है कि क्या अवमानना की माफी मांगी गई है और अगर नहीं तो क्या उपयुक्त सजा दी जानी चाहिए.

कैसे शुरू हुआ यह अवमानना मामला?

यह मामला RBT प्राइवेट लिमिटेड के एक व्यावसायिक विवाद से उत्पन्न हुआ था, जहां अपीलकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि प्रतिवादी संजय अरोड़ा ने समझौता ज्ञापन के तहत दायित्वों का पालन करने में विफल रहने के बाद अदालत और मध्यस्थता आदेशों का उल्लंघन किया.

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हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश ने प्रतिवादी को अवमानना का दोषी पाया, लेकिन बाद में एक अन्य न्यायाधीश ने अवमानना नहीं पाया. वहीं जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने पाया कि दूसरे न्यायाधीश ने पहले के फैसले को प्रभावी ढंग से पलट दिया, जो केवल अपीलीय अदालत ही कर सकती है. अदालत ने यह भी कहा कि यदि प्रतिवादी पहले आदेश से असंतुष्ट था, तो उसे अवमानना ​​न्यायालय अधिनियम की धारा 19 के तहत डिवीज़न बेंच में अपील करनी चाहिए थी. सर्वोच्च न्यायालय ने दूसरे फैसले को रद्द करते हुए मामले को दोबारा से हाई कोर्ट के पास वापस भेज दिया है.