अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट जजों के रवैये से चिंता जताते हुए कहा कि जब एक जज पहले ही अवमानना का फैसला सुना चुके हैं, तो फिर अन्य सिंगल जज की बेंच उस मामले पर कैसे विचार कर सकती है. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि जब एक ही अदालत के एक न्यायाधीश ने प्रतिवादी को अवमानना का दोषी मानते हुए एक विशेष दृष्टिकोण अपनाया है, तो उसी हाई कोर्ट के अन्य सिंगल जज बेंच यह दोबारा नहीं जांच सकता कि क्या वास्तव में अवमानना की गई थी या नहीं ऐसा करना न्यायिक शिष्टाचार का उल्लंघन और अधिकार क्षेत्र से परे है.
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट कहा कि एक ही न्यायालय के दो जजों के बीच समन्वय बनाए रखना महत्वपूर्ण है और एक न्यायाधीश के आदेश पर दूसरे न्यायाधीश द्वारा पुनर्विचार करना अनुचित है. अदालत ने यह भी कहा कि अगर सिंगल जज सुनवाई करते हैं तो उनके पास केवल यह विचार करने का ऑप्शन होता है कि क्या अवमानना की माफी मांगी गई है और अगर नहीं तो क्या उपयुक्त सजा दी जानी चाहिए.
यह मामला RBT प्राइवेट लिमिटेड के एक व्यावसायिक विवाद से उत्पन्न हुआ था, जहां अपीलकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि प्रतिवादी संजय अरोड़ा ने समझौता ज्ञापन के तहत दायित्वों का पालन करने में विफल रहने के बाद अदालत और मध्यस्थता आदेशों का उल्लंघन किया.
हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश ने प्रतिवादी को अवमानना का दोषी पाया, लेकिन बाद में एक अन्य न्यायाधीश ने अवमानना नहीं पाया. वहीं जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने पाया कि दूसरे न्यायाधीश ने पहले के फैसले को प्रभावी ढंग से पलट दिया, जो केवल अपीलीय अदालत ही कर सकती है. अदालत ने यह भी कहा कि यदि प्रतिवादी पहले आदेश से असंतुष्ट था, तो उसे अवमानना न्यायालय अधिनियम की धारा 19 के तहत डिवीज़न बेंच में अपील करनी चाहिए थी. सर्वोच्च न्यायालय ने दूसरे फैसले को रद्द करते हुए मामले को दोबारा से हाई कोर्ट के पास वापस भेज दिया है.