CrPC Section 357: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजा और सजा के बीच अंतर स्पष्ट करने को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत के पास यह शक्ति है कि वे आरोपी को सजा देने के साथ जुर्माना भी लगा सकती है, इसे मुआवजा देने से जोड़कर नहीं देखना चाहिए. अदालत सीआरपीसी की धारा 357 के अनुसार आरोपी के हरकतों से हुई हानि की भरपाई करने को कह सकती है. इसका आशय है कि न्यायिक प्रक्रिया में पीड़ित को भुलाया नहीं गया है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के उस हिस्से को सुधारते हुए कहा जिसमें उच्च न्यायालय ने आरोपी को मुआवजा देने के आधार पर राहत दी थी.
विस्तार में कहें तो, गुजरात हाईकोर्ट ने दोषियों की चार साल की सजा ये कहते हुए कम कर दी थी कि इन लोगों ने पहले ही 5 लाख का मुआवजा पीड़ित को दिया है और साथ ही 12 साल जेल की सजा काट चुके हैं. इन आरोपियों के खिलाफ इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) की धारा 323, 325 और गुजरात अधिनियम के सेक्शन 135 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट में, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई की. बेंच ने कहा कि अगर मुआवजे को सजा में राहत देने का आधार बना दिया जाए, तो न्याय व्यवस्था पर इसके प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
बेंच ने कहा,
"CrPC की धारा 357 के मुताबिक दोषी को मिलने वाली सजा और मुआवजा दोनों भिन्न है. मुआवजे देने का आशय पीड़ित को हानि के लिए राहत देना है जिन्हें अपराध के दौरान हानि पहुंची है. मुआवजे को सजा कम करने का आधार नहीं माना जा सकता है."
बेंच ने आगे कहा,
"अगर ऐसा होने लग जाए तो पैसे वाले अपराधी न्यायिक प्रक्रिया से बाहर निकल जाएंगे, जिससे आपराधिक कार्यवाही का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा."
सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मुआवजे के केन्द्र में पीड़ित है जिसे दोबारा से जीवन को सुचारू रूप से चलाना है. वहीं, सजा या जुर्माना लगाना दंडात्मक उपाय है, इसका आशय आरोपी को दोबारा से अपराधिक गतिविधियों में शामिल होने से रोकना है.