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जस्टिस निर्मल यादव को CBI Court से बड़ी राहत, 15 लाख घूस लेने के आरोप से बरी हुई

जस्टिस निर्मल यादव को चंडीगढ़ की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 2008 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय की न्यायाधीश के रूप में कार्य करते हुए 15 लाख रुपये नकद लेने के आरोप से बरी कर दिया है.

Justice Nirmal Yadav

Written by Satyam Kumar |Published : March 29, 2025 5:07 PM IST

जस्टिस निर्मल यादव को चंडीगढ़ की एक विशेष सीबीआई अदालत (CBI Court) ने बड़ी राहत दी है. सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने जस्टिस को 2008 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जस्टिस के रूप में कार्य करते हुए 15 लाख रुपये घूस लेने के आरोप से बरी कर दिया है. इससे पहले राहत पाने के लिए जस्टिस यादव ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की थी, जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में उनकी याचिका खारिज कर उन्हें कार्यवाही में रूकावटें डालने के लिए फटकार लगाई थी.

बरी हुई जस्टिस निर्मल यादव

विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश विमल कुमार ने 2014 में यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 11 और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत चार अन्य आरोपों के तहत आरोप तय किए थे. इस ट्रायल में, हालांकि अभियोजन पक्ष ने 84 गवाहों का उल्लेख किया, लेकिन केवल 69 गवाहों को पेश किया गया. इसी साल फरवरी में, हाई कोर्ट ने केंद्रीय एजेंसी को 10 गवाहों की पुनः जांच करने की अनुमति दी और ट्रायल कोर्ट को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि ट्रांयल में अब अनावश्यक स्थगन न दिए जाएं. फलस्वरूप, ट्रायल कोर्ट ने मामले में 27 मार्च को फैसला रिजर्व किया था. वहीं, फैसला सुनाते हुए  विशेष सीबीआई जज आलका मलिक ने आज जस्टिस निर्मल यादव को बरी किया है.

क्या है मामला?

यह मामला 2008 में शुरू हुआ था, जब पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की तत्कालीन जस्टिस निर्मल यादव के एक चपरासी ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उसने जस्टिस को अदालत में 15 लाख रुपये नकद का एक बैग दिया गया था. इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपा गया था. अभियोजन पक्ष के अनुसार, यह बैग जस्टिस निर्मल यादव के आवास पर दिया जाना था. जनवरी 2009 में, सीबीआई ने जस्टिस यादव के खिलाफ अभियोजन की अनुमति मांगी, जिसे हाई कोर्ट ने नवंबर 2010 में मंजूरी दी, जिसके बाद जस्टिस यादव पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 11 और अन्य धाराओं के तहत शिकायत दर्ज की गई थी. हालांकि, जस्टिस यादव ने इस अनुमति के खिलाफ चुनौती दी.

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राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद मुकदमा शुरू

मार्च 2011 में, भारत के राष्ट्रपति के कार्यालय ने अभियोजन की अनुमति को मंजूरी दी. इसके बाद, केंद्रीय एजेंसी ने आरोप पत्र (Chargesheet) दाखिल किया. इस दौरान, जस्टिस यादव को फरवरी 2010 में उत्तराखंड हाई कोर्ट में ट्रांसफर किया गया और मार्च 2011 में उनकी सेवानिवृत्ति हो गई. यादव ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में कार्यवाही को रद्द करने की मांग की, जिसे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया. अब राहत के लिए जस्टिस निर्मल यादव ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें उन्होंने कहा कि यह बिना सबूत का मामला है और ट्रायल कोर्ट को उनके खिलाफ आरोप तय करने से रोका जाना चाहिए, लेकिन शीर्ष अदालत ने इन दलीलों से संतुष्ट नहीं हुआ और याचिका खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही में देरी करने की कोशिश करने के लिए फटकारा था.