नई दिल्ली: बिलकिस बानो (Bilkis Bano) ने अपने गैंग रेप और अपने परिवार के सदस्यों का मर्डर करने वाले 11 दोषियों के रेमिशन (Remission) के खिलाफ उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) में याचिका दायर की जिस पर सुनवाई चल रही है। 8 अगस्त, 2023 को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही पिछले साल के एक फैसले पर कुछ अहम सवाल उठाये हैं.
बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश बीवी नगरत्ना (Justice BV Nagarathna) और न्यायाधीश उज्ज्वल भुइयां (Justice Ujjal Bhuyan) की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है और आज, 9 अगस्त, 2023 को सुनवाई का तीसरा दिन है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस बीवी नगरत्ना ने सवाल उठाये हैं कि जब गुजरात उच्च न्यायालय (Gujarat High Court) ने याचिकाकर्ता-दोषी की याचिका को खारिज कर दिया था तो उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से पहले उन्हें बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) जाना चाहिए था।
जस्टिस नगरत्ना ने सवाल किए हैं, 'क्या याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि उन्होंने पहले गुजरात हाईकोर्ट में रिट दायर की थी? अनुच्छेद 32 के तहत यह याचिका किस तरह मेंटेनेबल है, इसे दायर की जाने की अनुमति कैसे मिली थी और इसे क्यों सुना गया?
इस मामले में एक परमादेश याचिका (Mandamus Writ) क्यों जारी की गई और इसे एक उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ कैसे मान्यता दी गई? गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती नहीं दी गई थी, तो उनके इस आदेश को किस आधार पर खारिज कर दिया गया?'
पीठ ने यह सफाई दी है कि वो फिलहाल सिर्फ अपने सवाल सबके समक्ष रख रही है, वो इनपर जवाब तब चाहेंगे जब दोषियों की तरफ से उनके वकील अदालत में अपीयर होंगे।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 32 (Article 32 of The Constitution of India) के तहत एक दोषी राधेश्याम भगवानदस शाह ने याचिका दायर की थी और अदालत से अनुरोध किया था कि वो गुजरात सरकार को आदेश दें कि उनकी रेमिशन की याचिका को 1992 की उस पॉलिसी के हिसाब से कन्सिडर किया जाए जो उस समय लागू थी जब उन्हें दोषी करार दिया गया था।
इस याचिका पर उच्चतम न्यायालय के जस्टिस अजय रस्तोगी (Justice Ajay Rastogi) और जस्टिस विक्रम नाथ (Justice Vikram Nath) की पीठ ने 13 मई, 2022 को यह फ़ाइल सुनाया था कि इस मामले में सभी ग्यारह दोषियों के रेमिशन को 1992 की पॉलिसी के तहत कन्सिडर किया जाना चाहिए और यह उसी राज्य में होना चाहिए जहां अपराध किया गया था।
2002 में हुए गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो का, जो गर्भवती थीं, गैंग-रेप किया गया था और उनकी तीन साल की बेटी समेत उनके परिवार के 14 सदस्यों का खून किया गया था। पिछले साल इस मामले के सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार द्वारा रेमिशन दे दिया गया था जिसके चलते वो जेल से छूट गए थे।
इन सभी दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी; पहले कुछ दोषियों ने गुजरात उच्च न्यायालय का रुख किया लेकिन वहाँ उनकी याचिका को इसलिए खारिज कर दिया गया क्योंकि उम्र कैद की सजा का आदेश बंबई उच्च न्यायालय द्वारा सुनाया गया था। इसके बाद याचिकाकर्ता ने सीधे उच्चतम न्यायालय का रुख किया और फिर उनके पक्ष में फैसला सुनाया गया।