नई दिल्ली: जामिया हिंसा मामले में शरजील इमाम,आसिफ इकबाल तन्हा और सफूरा जरगर समेत 11 आरोपियों को बरी करने के निर्णय को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है.
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को आंशिक रूप से पलटते हुए इमाम, तन्हा और जरगर सहित ग्यारह आरोपियों में से 9 के खिलाफ दंगा और गैरकानूनी असेंबली सहित विभिन्न अपराधों के लिए आरोप तय किए है.
इमाम, जरगर, मोहम्मद कासिम, महमूद अनवर, शहजर रजा, उमैर अहमद, मोहम्मद बिलाल नदीम और चंदा यादव पर भारतीय दंड संहिता की धारा 143, 147, 149, 186, 353, 427 के साथ-साथ अन्य धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे. आरोपी मोहम्मद शोएब और मोहम्मद अबुजार पर आईपीसी की धारा 143 के तहत आरोप लगाए गए और अन्य सभी अपराधों से मुक्त कर दिया गया.
हाईकोर्ट ने आरोपी इकबाल तन्हा को आईपीसी की धारा 308, 323, 341 और 435 के तहत आरोपो से मुक्त कर दिया गया है.
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने पुलिस और 11 आरोपियों के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद पुलिस की याचिका पर 23 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
मंगलवार को न्यायालय समय के साथ ही फैसला सुनाते हुए अदातल ने कहा कि यह अदालत आरोप तय करने के न्यायशास्त्र में नयापन नहीं ला रही है, जो सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही स्थापित कर दिया है.
अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया, जैसा कि वीडियो में देखा जा सकता है, प्रतिवादी भीड़ की पहली कतार में शामिल होकर दिल्ली पुलिस मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे और बेरिकेड्स को हिंसक रूप से धकेल रहे थे.
अदालत ने शरजील इमाम, असिक इकबाल तन्हा और सफूरा जरगर सहित 9 आरोपियों के खिलाफ आईपीसी के दंगा सहित विभिन्न अपराधों के तहत आरोप तय करते हुए उन्हे अन्य अपराधों के मामलों में आरोप से मुक्त किया है.
इसके साथ ही अदालत ने आरोपी मो. अबुजर व मो. शोएब आईपीसी की धारा 143 के तहत आरोपी माना है वही उन्हें अन्य अपराधों के तहत आरोप मुक्त किया गया है.
मामले में साकेत कोर्ट ने 4 फरवरी 2023 को शरजील इमाम समेत 11 लोगों को आरोप मुक्त करते हुए कहा था कि उन्हें पुलिस ने बलि का बकरा बनाया है. कोर्ट ने अपनी राय रखते हुए इन शरजील व अन्य लोगों के कदम को विरोध माना था. पुलिस को नसीहत दी थी कि वह विरोध और बगावत में अंतर को समझे। कोर्ट ने यह भी कहा था कि इन लोगों की मिलीभगत से हिंसा हुई, इसका कोई प्रमाण नहीं है।
दिल्ली पुलिस ने कुल मिलाकर इस मामले में 12 लोगों को आरोपी बनाया था. उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की कई धाराओं सहित दंगा और गैरकानूनी सभा को लागू किया गया था. 4 फरवरी को सुनाए गए एक आदेश में, ट्रायल कोर्ट ने न केवल मामले के 12 में से 11 अभियुक्तों को आरोपमुक्त कर दिया था, बल्कि एक "गलत कल्पना" आरोप पत्र दायर करने के लिए दिल्ली पुलिस को फटकार भी लगाई थी. अदालत ने कहा कि पुलिस वास्तविक अपराधियों को पकड़ने में विफल रही और इमाम, तन्हा, जरगर और अन्य को "बलि का बकरा" बनाया.
दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट में शरजील सहित 11 लोगों को बरी करने के निचली अदालत के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. पुलिस ने याचिका में कहा कि निचली अदालत का आदेश न्याय की कसौटी पर खरा नहीं उतरता, क्योंकि पुलिस द्वारा पेश साक्ष्यों पर गौर नहीं किया गया।