नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) ने 2018 के भीमा कोरेगांव मामले (Bhima Koregaon Case) में आरोपियों वेर्नन गॉन्साल्वेज (Vernon Gonsalves) और अरुण फेरेरा (Arun Ferreira) को आज जमानत दे दी है, लेकिन साथ में कुछ शर्तें भी लगाई हैं।
बता दें कि अदालत ने यह भी माना है कि दोनों के खिलाफ जो आरोप लगाए गए थे, वो गंभीर हैं लेकिन ये अकेले जमानत न देने का कारण नहीं हो सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अनिरुद्ध बोस (Justice Aniruddha Bose) और न्यायाधीश सुधांशु धूलिया (Justice Sudhanshu Dhulia) की पीठ ने यह फैसला सुनाया है।
जैसा कि हमने आपको अभी बताया, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ का यह कहना है कि सिर्फ गंभीर आरोपों के आधार पर आरोपियों को जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता है। दोनों आरोपियों को बेल देते हुए पीठ ने कहा है कि क्योंकि आरोपियों को पहले 1967 अधिनियम के तहत आरोपी ठहराया गया था, इसलिए उन्हें यह जमानत शर्तों के साथ दी जा रही है।
वेर्नन गॉन्साल्वेज और अरुण फेरेरा को जमानत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि दोनों आरोपी किसी भी हाल में महाराष्ट्र राज्य छोड़कर नहीं जा सकते हैं, दोनों को अपना पासपोर्ट सरेंडर करना होगा, वो सिर्फ एक मोबाइल फोन इस्तेमाल कर सकते हैं, उन्हें राष्ट्रीय जांच एजेंसी को अपने पते के बारे में सूचित करना होगा और उन्हें अपना फोन नंबर एनआईए के साथ शेयर करना होगा। दोनों आरोपियों का फोन कभी डिस्चार्ज नहीं होना चाहिए और उसकी लोकेशन हमेशा ऑन रहनी चाहिए ताकि एनआईए अधिकारी उन्हें ट्रैक कर सके।
अदालत ने यह भी कहा है कि अगर इनमें से किसी भी शर्त का आरोपी पालन नहीं करते हैं, कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हैं या मामले से जुड़े गवाहों को धमकाने की कोशिश करते हैं तो अभियोग पक्ष (Prosecution) उनकी जमानत को खारिज करने हेतु याचिका दायर कर सकते हैं।