नई दिल्ली:लॉ स्टूडेंट को RTE Act के बारे में जागरूक और जवाबदेह बनाने के लिए Bar Council of India देशभर के लॉ कालेजो में RTI Act को अनिवार्य विषय बनाने पर विचार कर जल्द ही निर्णय ले सकता है.
Delhi High Court में दायर याचिका की सुनवाई के दौरान जवाब पेश करते हुए BCI ने अदालत को बताया कि वह बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम यानी आरटीई अधिनियम, 2009 को सभी लॉ कॉलेज और विश्वविद्यालय में छात्रों के लिए एक अनिवार्य विषय बनाने के लिए एक प्रतिवेदन पर विचार करेगा और जल्द ही निर्णय लेगा.
सोशल ज्यूरिस्ट एनजीओ ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि उसके द्वारा 15 फरवरी को बीसीआई से अगले शैक्षणिक वर्ष के शुरू होने से पहले इस मामले पर विचार करने का अनुरोध किया था, लेकिन बीसीआई द्वारा इस मामले में कोई निर्णय नहीं लिया गया है.
एडवोकेट अशोक अग्रवाल और कुमार उत्कर्ष के जरिए पेश की गई याचिका में अदालत को बताया गया कि भले ही देश में यह क़ानून बहुत पहले लागू किया गया था, लेकिन कानून के छात्रों, वकीलों और जजों में से शायद ही किसी को इसके बारे में पता हो.
याचिका में कहा गया कि "शिक्षा के अधिकार को अंतिम छोर तक पहुंचाने के लिए कानूनी छात्रों और अधिवक्ताओं पर एक बड़ी जिम्मेदारी डालती है और अधिवक्ता ही होते है जो कानून के उल्लघंन के मामलो को अदालत तक ले जा सकते है. ऐसे में बच्चों के मामले में तो यह जिम्मेदारी ज्यादा बढ जाती है. क्योकि उन्हे अधिकार प्रदान कराने में अधिवक्ता बेहतर भूमिका निभाता है.
याचिका में कहा गया कि बच्चों तक उनके अधिकार पहुंचाने और शिक्षा के अधिकार के लिए न्याय मांगने के लिए वकीलों को शिक्षित किया जाना आवश्यक है.
याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि वर्तमान में इस अधिनियम की सही तरीके से पालना नहीं होने और इस अधिकार के उल्लंघन के लिए बहुत कुछ दोष इसलिए है क्योंकि कानून के छात्रों और वकीलों को शिक्षा के अधिकार के बारे में कुछ भी नहीं सिखाया जाता है.
याचिका का जवाब पेश करते हुए बीसीआई ने अदालत से कहा कि वर्तमान में पुरे देश में लॉ स्टूडेंट को RTE Act के बारे में जानकारी दी जा रही हैं और ना केवल इस अधिनियम से जुड़े बल्कि इस विषय पर विशेष रूप से अनुच्छेद 21ए से जुड़े संवैधानिक लॉ विषय के सवाल भी परीक्षा में पूछे जाते हैं.
याचिकाकर्ता सोशल ज्यूरिस्ट एनजीओ की ओर से दिए गए प्रतिवेदन पर बीसीआई ने कहा कि बीसीआई याचिकाकर्ता के प्रतिवेदन पर निश्चित रूप से उचित समय के भीतर विचार करेगा.
दोनो पक्षो की बहस सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि इस मामले में बीसीआई ने प्रतिवेदन पर विचार करने का आश्वासन दिया है और इसी के तहत एनजीओ की जनहित याचिका को निस्तारित किया जाता है.