आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने मारे गए माओवादियों केशव राव और वेंकट नागेश्वर राव के परिजनों की याचिकाओं का निपटारा करते हुए कहा कि वे शव लेने के लिए छत्तीसगढ़ के संबंधित पुलिस अधिकारियों से संपर्क कर सकते हैं. इन याचिकाओं में छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश सरकारों को शव सौंपने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था ताकि वे उनका अंतिम संस्कार कर सकें.
हाई कोर्ट ने दोनों रिट याचिकाओं का निपटारा करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता शव लेने के लिए छत्तीसगढ़ के संबंधित पुलिस अधिकारियों से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं. शवों के पोस्टमार्टम की स्थिति के बारे में न्यायालय के विशेष सवाल पर छत्तीसगढ़ के महाधिवक्ता ने बताया कि सभी शवों का पोस्टमार्टम शनिवार तक पूरा कर लिया जाएगा. छत्तीसगढ़ के महाधिवक्ता ने अदालत को यह भी बताया कि पोस्टमार्टम पूरा होने के बाद शवों को परिजनों को सौंप दिया जाएगा.
नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों के सबसे बड़े अभियानों में से एक में 21 मई को छत्तीसगढ़ के बीजापुर-नारायणपुर जिलों की सीमा पर स्थित अबूझमाड़ वन क्षेत्र में एक मुठभेड़ में प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू और 26 अन्य माओवादी मारे गये थे. इस अभियान के दौरान राज्य पुलिस के जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) के दो जवानों की भी मौत हो गयी थी. बता दें कि सुरक्षाबलों ने बुधवार को नारायणपुर-बीजापुर-दंतेवाड़ा जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में मुठभेड़ में 27 नक्सलियों को ढेर कर दिया. इस मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने एक करोड़ रुपए के इनामी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू को भी मार गिराया. इस एक्शन को लेकर देश के गृहमंत्री अमित शाह ने बताया कि ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट के पूरा होने के बाद छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र में 54 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है और 84 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है.
छत्तीसगढ़ के पूर्व डीजीपी डीएम अवस्थी ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि तेलंगाना में काफी नक्सलवाद था. जब वह आंध्र प्रदेश का हिस्सा था, पुलिस ने काफी सालों तक वहां पर ऑपरेशन किए और वहां पर काफी हद तक नक्सलवाद समाप्त हो गया था. छत्तीसगढ़ के इस एरिया में आकर, जंगल का फायदा लेकर, नक्सलियों ने अपने ऑपरेशन जारी रखने की कोशिश की. ऐसे में यहां पर नक्सलवाद खत्म होने के बाद मुझे नहीं लगता कि उनके पास कोई गुंजाइश बची है. डीजीपी ने आगे बताया कि छत्तीसगढ़ में नक्सली खात्मे को लेकर डीआरजी की एक टीम बनाई गई, पहले भी छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ और अन्य बटालियन नक्सलियों से लड़ाई लड़ रही थी. जब वह 2016 में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन का डिजी बने और 2014 में जब से देश में पीएम मोदी की सरकार आई तो एक नीति बनी की नक्सलवाद को खत्म करना है. उस समय छत्तीसगढ़ में डॉ रमन सिंह मुख्यमंत्री थे. डीआरजी को लगभग 2015 में बनाया गया. 2016 में हम लोगों ने डीआरजी के जवानों को और रिक्रूट करते हुए भारत की जो प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट है. उससे स्पेशल ट्रेनिंग दिलाई, जिसमें उन्हें जंगल वार की ट्रेनिंग मिली, जिसके बाद 2016 के आखिर तक पूरी फोर्स ट्रेंड हो चुकी थी. 2016 खत्म होते-होते ऐसी स्थिति में छत्तीसगढ़ की खुद की फोर्स आ गई थी कि सीआरपीएफ और कोबरा उनके साथ मिलकर ऑपरेशन कर सके. उसके बाद ऑपरेशन चालू हुआ और तरह-तरह की प्लानिंग हुई. 2017-18 में भी बहुत सफलता मिली. सड़कें बनी और विकास कार्य हुए. जैसे-जैसे सड़कें बनी, माओवादी इलाकों में हम घुसते रहे. अब डीआरजी एक बहुत प्रोफेशनल फोर्स बन चुकी है और उसने एक बड़ा ऑपरेशन करके दिखाया है.